पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१०४

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साधन म्वारिफ का अविर्भाव हुआ। मन न माना । लालसा बनी रही । अपने को नाचीज समझा और साक्षात्कार हो गया। म्बारिफ के उदय से सूफियों को हक का बोध हो गया, पर जिक का अनुष्टान लोक-मंगल की कामना से आरिफ बराबर करते रहे। जिक्र पर सूफियों ने पूरा ध्यान दिया और उसके अनेक रूपों की प्रतिष्टा की । जिक्र के व्यापक अर्थ में कुछ संकोच कर जिक्र, फिक एवं समा का विधान किया गया ; नहीं तो, वास्तव में जिक अंगी और शेष अंग है । जिक्र के सामान्यतः दो भेद किए गए हैं; एक का नाम 'जिक स्त्री और दूसरे का "जिक जली' है। जली का संबंध वाणी एवं खफी का हृदय अथवा मन से है। क्रिया तो उभयनिष्ठ होती ही है। खफी के रूपांतर को 'फ़िक' कहते हैं। फिक में चिंतन की प्रधानता होती है। इसको हम 'चिंता' के रूप में पाते है। जली के अनुष्ठान का मूल मंत्र यद्यपि वही 'ला' इलाह इल्लिल्लाह' है जो खफी का, तथापि उसकी प्रक्रिया उससे सर्वथा भिन्न है। जली में चिल्ला चिल्लाकर अन्य वृत्तियों की उपेक्षा तथा दमन किया जाता है तो खफी में उस तत्व का उद्बोधन जो हमास इष्ट होता है। जली संघ की साधना है तो खफी हृदय की एकांत भावना । जली स्तवन है तो खफी योग । योग के तराय प्रसिद्ध ही हैं। सूफी चित्तयत्ति-निरोध को 'मुजाहदा' कहते हैं। उनका जेहाद मुशरिक या काफिर से नहीं खुद अपनी 'नफ्स' से होता है। सूफी नफ्सपरस्ती को 'कुम' समझते हैं और उसी को दूर करने के लिये 'किक' करते हैं। जिक्र के अनंतर एक और क्रिया की जाती है जिसको लोग 'मुराकबा' कहते हैं । मुराकबे में दिल की उस परेशानी का प्रबंध किया जाना है जो किसी संस्कार के अतिक्रमण के कारण हो जाती है । इसमें कुरान के कतिपय चुने हुए स्थलों का पाठ किया जाता है। कहते हैं कि स्वयं मुहम्मद साहब कुरान का पाठ बड़े चाव से करते तथा सुनते थे। जिक्र के उपरांत कुरान का पाठ आरंभ करने के पहले सूफी अल्लाह (१) डिक्शनरी आव इसलाम । (२) ऐस्पेक्ट्स भाव इसलाम, १० १६२ ।