पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१०९

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१२ तसबुफ अथवा सुफीमत शरीअत से यद्यपि तरीकत भिन्न है तथापि उसमें भी क्रियापद ही प्रधान है। तरीकत को चाहें तो तसव्वुफ की शरीअत कह सकते हैं। तरीकत पर चलने से जिस म्बारिफ का प्राविर्भाव होता है उसमें चिंतन का पूरा पूरा योग है । म्वारिफ की दशा में जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह इलहाम की तरह वासनात्मक नहीं होता। उसका मूलाधार प्रज्ञा है। प्रज्ञात्मक ज्ञान होने के कारण उसको किसी अनिष्ट का भय नहीं रह जाता, वह सत्य का अनुभव कर लेता है और मारिफत से हकीकत की अवस्था में पहुँच जाता है। हकीकत वास्तव में साधन नहीं, साधक की अनुभूति की अवस्था है । उसी अनुभूति की उपलब्धि के लिये सालिक सारी योजना करता है। हकीकत की प्राप्ति मारिफत पर निर्भर रहती है। वारिफ 'इल्म' से सर्वथा भिन्न है। परमेश्वर के साक्षात्कार लिये म्वारिफ अनिवार्य है । इल्म को तो सूफियों ने प्रावरण तक कह दिया । म्बारिफ और इल्म में सामान्यतः विद्या और अविद्या का भेद है। हदीस, सुचा, इज्मा; कयास आदि का म्वारिफ से कुछ संबंध नहीं । आरिफ लोक-मंगल की भावना से उन पर ध्यान देता है, परम सत्य के प्रतिपादन की दृष्टि से नहीं । कुरान भी वास्तव में एक पुस्तक ही है जिसमें जीवन-यापन की व्यवस्था आसमानी ढंग से की गई है और अल्लाह की अनन्यता का बोधमात्र कराया गया है। उसमें आध्यात्मिक दशा की अनुभूतियों का प्रकाश नहीं, अल्लाह का ऐश्वर्य ( जलाल ) है । अतएव सूफियों की दृष्टि में वह 'परा' के अंतर्गत नहीं हो सकती ; 'अपरा' से ही उसका अधिकतर संबंध है। प्रस्तु, सूफियों का प्रधान साधन म्वारिफ है । म्वारिफ विभु की विभूति या अल्लाह की अनुकंपा का प्रसाद है ; अतः वह बिना शरीश्रत और तरीकत के व्याकरण के भी उत्पन हो सकता है। उसके लिये अल्लाह की कृपा ही पर्याप्त है । सूफियों में अनेक ऐसे भी हुए जिन्हें प्रियतम का साक्षात्कार अनायास ही हो गया । उनको शरीअत या तरीकत के प्राचरण की आवश्यकता न पी। उनको उनमें कुछ तथ्य दिखाई न दिया । (१) स्टडीज इन तसव्वुफ़, पृ० २०६ ।