पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/११२

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साधन ६५ पर पड़ाव डालता है। बारिफ से आरिफ और आगे बढ़ता है तब उसे सत्य की झलक मिलने लगती है और वह हकीक की भूमि पर ठहर जाता है । इस मुकाम पर उसे हक का आभास तो मिल जाता है, पर उसका संयोग नहीं मिलता। इस- लिये वह कुछ और आगे बढ़ता है और वस्ल की भूमि पर अपने प्रियतम का साक्षात्कार कर उसी के संभोर में निरत हो जाता है। यही उसका लक्ष्य था। प्रिय- तम में जब वह इतना तल्लीन हो जाता है कि उसे प्रियतम के अतिरिक्त और कुछ भी दिखाई नहीं देता, यहाँ तक कि उसका अहंभाव भी नहीं रह जाता तब उसे शाश्वत 'बका' का आनंद मिल जाता है और वह फना की भूमि में ब्रह्म-विहार करता है। अब्द को यदि सामान्य प्राणी मान लें और बका की परिस्थिति को फना से सर्वथा भिन्न मानें तो तसव्वुफ के मुकामात क्रमशः इल, जहद, म्वारिफ़, वज्द, हकीक, वस्ल एवं फ़ना हैं। हम इन्हीं को तसव्वुफ की 'सप्तभूमयः' कहना उचित समझते हैं, क्योंकि सूफियों के स्वभाव से इन्हीं का अधिक मेल खाता है। इश्क से सूफियों का कितना संबंध है, इसके कहने की जरूरत नहीं । तसव्वुफ का सारा महल इश्क पर खड़ा है । जिस म्वारिफ का उल्लेख ऊपर किया गया है उसका भी स्वतंत्र व्यापार सूफी नहीं करते। म्वारिंफ की उद्भावना तो सूफियों को जिज्ञासा की शांति एवं वासना के परिष्कार के लिये करनी पड़ी थी। सुफियों को प्रेम के अतिरिक्त एक भी साधन ऐसा नहीं दिखाई पड़ता जो उनको स्वतः पार लगा दे। किसी वासना, भावना किंवा धारणा के प्रतिपादन में सूफी चाहे जितना तर्क करें, पर अन्तःकरण से वे सर्वदा प्रेम के पुजारी और इश्क के कायल हैं। इश्क के आधार पर ही उनका सारा श्रेय निर्भर है। व्यक्ति-विशेष के प्रेम में पड़ कर सूफी परम प्रेम का अनुभव तथा हुस्नपरस्ती में अल्लाह के जमाल का साक्षात्कार करते हैं। उनके लिये प्रेम प्रतीक है। चाहे वह किसी का भी कैसा ही प्रेम क्यों न हो । प्रेम के पुल पर चल कर ही सूफो भवसागर पार करते हैं। यही उनका अमोघ अस्त्र या परम साधन है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिये कुछ उपचार किए ही जाते हैं। ओषधियों का भव-रोग में भी बड़ा महत्त्व है। साक्षात्कार के लिये पुराने नबी सुरा का सेवन