पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/११९

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तसन्युफ अथवा सूफीमत 1 प्रतीकों के विषय में हम पहले ही कह चुके हैं कि प्रारंभ में उनका संबंध किसी । किसी भाव से अवश्य होता है, पर धीरे धीरे उनसे मूल भाव उड़ जाते हैं और फेर उनकी ठटरी की उपासना होने लगती है। बात यह है कि मनुष्य में अनुकरण की प्रवृत्ति अत्यंत प्रबल होती है, और भाव की अपेक्षा क्रिया का अनुकरण सुगम होता है और किया भी खूब जाता है। परिणाम यह होता है कि कुछ दिनों में स्थिति इतनी भयंकर हो जाती है कि लोग मोह और ममत्व के कारण प्रतीकों को आराध्य से भी अधिक समझने लग जाते हैं और मनुष्यमात्र में उन्हीं प्रतीकों का पूजन देखना चाहते हैं जो उनके बाप-दादों अथवा उनके मत प्रवर्तक को अत्यन्त प्रिय थे। सारांश यह कि जिन्हें वे अपनी बपौती अथवा विरासत का धन समझते हैं उन्हीं की अपना सब कुछ मानते हैं, दूसरों की स्थिति को कभी आँख खोलकर नहीं देखते इसी से प्रतीक पर आश्रित कविता सबको रसमग्न नहीं कर पाती और बहुतों के कोप का कारण भी होती है। सूफियों का प्रधान भाव रति है तो रति का मुख्य उद्दीपन है सुरा। सुरा और रति के आधार पर ही सूफी साहित्य का सारा महल टिका है। इसमें भी रति का आलंबन ही सुरा का दाता भी होता है। माशूक ही साकी का काम करता और प्रेम-मदिरा पिला कर प्रेमी को छका देता है। माशूक का हुस्न अल्लाह का जमाल है जो किसी हसीन को अल्लाह का प्रतीक बनाता है। अल्लाह पुरुषविध है । मुहम्मद साहब को उसने किशोर के रूप में हो दर्शन दिया था । किशोरी तो पुरुष के अंग विशेष से उसी की रति के लिये उत्पन्न की गई और उसके फेर में पड़ कर मनुष्य मर्त्यलोक का वासी हुा । वह स्वर्ग से निकाल दिया गया। अस्तु किशोरी का प्रेम प्रलोभन का कारण समझा गया और किशोर ही सूफियों के वास्तविक प्रतीक हुए। रमणी को रमणीयता मान्य होने पर भी सूफियों के प्रालंबन प्रायः किशोर होते हैं। उमर खय्याम के सदृश कतिपय ही कवि ऐसे ढीठ रसिक निकले जिन्होंने (१)दी रेलिजस लाइफ एन्ड पेटीच्यूड इन इसलाम, पृ० ४६ । (२) इनसाइक्लोपीडिया भाव इसलाम ( हौवा पर लेख ) ।