पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२१

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१०४ ससव्वुफ अथवा सूफीमत के इस प्रतीक ने पाषंडियों के लिये व्यभिचार का मार्ग चलता कर दिया और शाही अमरदपरस्ती में खतम समझी गई। हाँ, तो इसलाम में असरदपरस्ती के प्रचार का प्रमुख कारण परदा का कट्टर विधान और संभोग की उत्कट लालसा है। विषयी शासक ही भोग-विलास की लिप्मा में लिप्त थे और परदे की कठोरता के कारण अमरद को हमेशा अपने साथ रखते थे, जिससे रमणी के अभाव में अपनी काम-वासना तृप्त करते थे। इन कर शासकों के दंड-विधान से बचे रहने के लिये सूफियों की अमरदपरस्ती काफी थी। दोनों के बालंबन अमरद थे। दोनों ही प्रेम चाहते थे। अन्तर कंवल यह था कि सूफी अमरद को प्रतीक मान उसके वियोग में अल्लाह का विरह जगाते थे और अमीर उसी के संभोग में निरत । एक का प्रेम हकीकी था तो दूसरे का मजाजो। एक के लिये जो जीना था दूसरे के लिये वहीं ‘क्रियाम' । अस्तु, सूफियों का अपराध इसमें इतना ही है कि उनके अमरद प्रतीक और रति साधना के कारण इसके प्रचार में योग मिला और सच्चे सूफियों का भी सारा प्रेम-काव्य प्रकारान्तर से इसका सहायक बन गया। इसलाम में मंगला. मुखियों का अभाव था तो अमरदों ने इसकी पूर्ति कर दी। लिप्सा ने क्या से क्या कर दिया ! वास्तव में सूफियों के प्रिय प्रतीक का नाम मगबच्चा है। सूफी उसी की मुरीदी करते और उसीके प्रेम-प्रसार में मग्न होते हैं। बात यह है कि जब लोलुप नरेश तुर्कों पर मर रहे थे और अमरदपरस्ती में मस्त थे, तब ईरान की जनता अपने प्राचीन वैभव को तरस रही थी। उसका अपने पुरुषार्थ से विश्वास उठ चला था। वह इसलाम के आतंक में अच्छी तरह आ चुकी थी । बाहर से उसने इसलाम को तो कबूल ही कर लिया पर भीतर ही भीतर उसके श्रार्य संस्कार भी अपना काम करते रहे। धीरे धीरे वे इसलाम में परिवर्तन और उसके संप्रदायों में मतभेद के कारण होते रहे। विद्वानों का तो यहाँ तक कहना है कि संस्कृति की दृष्टि से अरब विजित और ईरान ही विजयी है। कुछ भी हो, ईरान कभी अपनी संस्कृति को भूल न सका। 'मग़बच्चा' या 'पीरेमुर्गो' इसी का परिणाम है । न जाने कितने सूफियों में जरथुष्ट्र का स्मरण किया, कितनों ने अग्निपूजन किया, कितनों ने भाग्य को