पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२२

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प्रतीक १०५ कोसा ; और अंत में सभी ने मिलकर 'पीरे मुगाँ' की मुरीदी की और उसी को अपने परम प्रियतम का प्रतीक भी मान लिया। सुफी संस्कारवश मराबच्चों के पास जाने के लिये सदा उत्सुक रहे। हाफ़िज़ ने तो उनका अत्यंत आदर और सत्कार किया । एक कुमारी' विदुषी का मत है कि. इसलाम से त्रस्त पारसी जो पारस में रह गए थे, उनका काम हो गया था कि यात्रियों के लिये जलपान का प्रबंध करें। पथिकों के विश्राम के स्थान प्रायः पारसीयों के पानकगृह थे। उन्हीं में यात्रियों को शरण तथा शराब मिलती थी। पारसी अनादिकाल से सोमरस पीते आ रहे थे। मधु से उन्हें विशेष प्रेम था। अरब भी शराब के भक्त थे। मुसलिम होने पर भी मुँह की लगी नहीं छूटती थी। मार्ग में उसी मधुपान के लिये लालायित रहते थे। सूफियों ने इसी म पान को प्रतीक के रूप में ग्रहण किया और मग़वच्चों को मुरशिद, पीर, साकी, माशूक आदि अनेक नामों से याद किया । ऊपर जो कुछ कहा गया है उसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि रमणी किसी दशा में तसव्वुफ में आलंबन हो ही नहीं सकती। नहीं ; स्वयं सूफियों ने ही स्त्री को भी प्रेम का प्रतीक माना है। अरबी सा मनीषी का कहना है कि अल्लाह कभी अमूर्त रूप में दर्शन नहीं देता और स्त्री-रूप में ही उसका साक्षात्कार श्रेष्ठ होता है। रति के संबंध में हम पहले भी बहुत कुछ कह चुके हैं। यहाँ बस इतना भर संकेत कर देना है कि जहाँ कहीं जमाल की अामा फूटती है वहीं रति को जगह मिल जाती है। अस्तु, हुस्न ही वास्तव में रति का आलंबन है। जब कभी हम किसी हसीन का दर्शन करते हैं तब उसकी ओर खिंच जाते हैं। यही खिंचाव अलौकिक होने पर हमें भवसागर से पार करता है। यही कारण है कि रूमी तथा जामी जैसे सिद्ध सूफियों ने भी किसी से प्रेम करने का श्राग्रह किया है। उनकी दृष्टि (१) पोएम्स फ्राम दी दीवान श्राव हाफिज, पृ० १४६ । • (२) स्टडीज़ इन इसलामिक मिस्टोसीज्म, पृ० १६१ । (३) दी मिस्टिक्स आव इसलाम, पृ० १०६-२० ।