पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत में बिना किसी हसीन से दिल लगाये हमारा मन परमात्मा में रम नहीं सकता। परंतु, हमको कभी यह भूल न जाना चाहिए कि वास्तव में वह हसीन हमारे प्रेम का वाहक है, श्रालंबन नहीं। अतः जब कभी हमको किसी हसीन के प्रति लोभ हो, लेप्सा हो,तृष्णा हो,तब हमें सावधान हो अपने प्रेम-प्रवाह को व्यवस्थित कर उसकी मति को परमात्मा की ओर मोड़ देना चाहिये, नहीं तो भवसागर से पार होना तो दूर रहा हमको संसार में भी सुख भोगना दुर्लभ हो जायगा । तात्पर्य यह कि सूफी हुस्न और कामुक काम के लोभी होते हैं । एक 'हुस्न' के प्रेम के द्वारा 'जमाल' का प्रेम जगाता है तो दूसरा कामवासना की प्रेरणा से किसी हसीन पर जान देता है, एक रस का संचार करता है तो दूसरा विष का व्यापार ।

  • सूफियों के प्रेम के संबंध में अबतक जो कुछ कहा गया है उसका सारांश यह है

कि सूफियों का प्रतीक वास्तव में अमरद नहीं, प्रेम है । रति का जो प्रालंबन है वही प्रियतम का प्रतीक है। सूफी चाहे जिस किसी को प्रेम का पात्र कहें पर वस्तुतः उनका प्रियतम परमात्मा ही है। परमात्मा ही के माधुर्य की विभूति रूप के रूप में अणु अणु में छिटक रही है। अतः जहाँ रूप है वहीं प्रियतम का. विलास है। वही हमें अपने परम प्रेम को जगाना है । निदान, हमको मानना पड़ता है कि किसी भी प्रेम का अालंबन तत्त्वतः परमात्मा ही है, और वह आलंबन ही सूफियों का सच्चा प्रेम-प्रतीक है। सूफी मसनवियों में जो स्त्री पुरुष के पारस्परिक प्रेम दिखाये गये हैं उनमें श्रालंबन सदा परमात्मा का द्योतक और आश्रय सदा जीवात्मा होता है। सूफियों की दृष्टि में परमात्मा आश्रय से बालंबन बन गया है और जीव आलंबन से आश्रय हो गया है। क्योंकि यदि उसका प्रेम पहले से ही जीवात्मा के प्रति न होता तो जीव उसके प्रेम में कभी नहीं पड़ता । बस प्रेम को पुकार से ही सूफी परमात्मा को पहचानते और उसके वस्ल के लिये सदा लालायित रहते हैं। सुरति के साथ ही तसव्वुफ में मुरा का भी विधान है। सुरा-सेवन में चाहे जितने दोष हों, पर एक गुण उसमें अवश्य है। यह वही गुण है जिसके लिये सूफी सदैव लालायित रहते हैं। शराब में वह शक्ति है जो इंसान को भव-बंधन से,