पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१२५

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तसव्वुफ श्रथवा सूफीमत प्रतीकों पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई हैं और उनमें प्रतीकों का अर्थ भी दिया गया है, पर उनमें उनके स्वरूप का बोध नहीं कराया गया है। अतः प्रतीकों के प्रकरण में हमें उनके उन विशिष्ट गुण पर ध्यान देना चाहिए जिनके कारण उन्हें प्रतीक की पदवी प्राप्त होती है। नखशिख में मुख की प्रधानता होनी है। उसका वर्णन प्रायः सभी कवि खूब करते हैं। पर उसका प्रऋट दर्शन कितनों को होता है ? परदे के भीतर का दीदार ही तो तसव्वुफ का सब कुछ है ! केश सूफियों का मुख्य प्रतीक है । उसकी कालिमा, उसकी कान्ति एवं उसका विस्तार प्रेमियों के लिये मनोरम और आकर्षक तो है ही सूफी उसको माया का रूप समझते हैं। प्रियतम अपने बालों के आवरण और विक्षेप से प्रेमियों को नचाता रहता है। उनका दिल उन्हीं में उलझ कर रह जाता है। कटाक्ष भी तो कुसुमबाण हैं जो हृद्य को विद्ध कर प्रियतम के प्रेम में प्रेमी को अचेत कर देते हैं और फिर कभी उसको प्रेम से मुक्त नहीं होने देते। ऐसे ही प्रियतम के प्रत्येक अंग किसी भावना के द्योतक हो तसन्युफ के प्रतीक बन जाते हैं और सूफी अपने काव्य में उनका प्रयोग कर प्रेम की व्यापकता को प्रशस्त करते हैं। बाद के क्षेत्र में जो प्रतिबिम्बवाद है भावना क्षेत्र में वही प्रतीक । सूफी दोनों के भक्त हैं और दोनों ही की छटा अपने काव्य में दिखाते हैं। पर उनका ध्यान अधिकतर प्रतीक पर ही रहता हैं । प्रतिबिम्ब का तो कहीं कहीं उनकी रचनाओं में आभास भर मिल जाता है। सूफियों का उससे कोई विशेष नाता क्या ? वही तो प्रतीक का मूल कारण है ? फिर प्रतीक के प्रत्यक्ष फल को छोड़ किसी अलक्ष्य के मूल को क्यों टटोलें ? कार्य को छोड़ कारण में क्यों लगें? सृष्टि में बहुत से प्राणी ऐसे भी हैं जिनकी दशा हमारी दशा से अच्छी तरह मेल खाती है। बुलबुल और तोते की दशा कितनी दयनीय है। उनका प्रेम कितना उपजाऊ है। बुलबुल पिंजड़े में पड़ी पड़ी जो राग आलापती है, तोता बंदी की दशा में जो गीत गाता है वह सूफियों के हृदय को बेच देता है । सूफी तादात्म्य का अनुभव कर बन्धन से मुक्त हो अपने परम धाम तक पहुँचने के लिये ठीक उसी प्रकार लालायित हैं जिस प्रकार बुलबुल चमन या तोता बन के लिये बुलबुल }