पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३०

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प्रतीक और शेखसाहब का भंडाफोड़ हुआ। और जाहिद की अच्छो गत बनी। अस्तु कहा चाहें तो हम कह सकते हैं कि सूफियों ने मत-प्रतिपादन के लिये मसनबी और भाव-प्रदर्शन के लिये गजल को चुना और व्यंग्य के विचार से रुबाई पर विशेष ध्यान दिया। इनमें भी भाव-प्रबलता के कारण गजल का ही व्यापक प्रसार हुआ। वियोग के वर्णन में तो सूफियों ने कमाल ही कर दिया। मसनवी में रूमी, गजल में हाफिज एवं रुबाई में खय्याम अपना सानी नहीं रखते । फलतः रूमी आचार्य, हाफिज भक्त और खय्याम भौजी कहलाए । सूफी काव्य के परिशीलन से पता चलता है कि रुबाई, मसनवी और गजल का क्रमशः प्रचार हुआ। और तसव्वुफ के विकास में सूफो जिदीक से आचार्य और फिर भक्त बने; किन्तु किसी भी दशा में प्रतीक से अलग न हुए। मुसलिम साहित्य में सूफियों की ऐसी धाक जमी कि फारसी में जितने कवि हुए सभी सूफियों के प्रतीकों के आधार पर कविता करने लगे। उनके प्रताप से किसी भी फारसी कवि के लिये शराब और साकी के बिना कविता करना दुस्तर हो गया। भाषा में बनावट और प्रतीकों में बुढ़ाई आ गई। स्वच्छन्द और अटपटे सूफियों को उनमें संतोष न रहा । उनमें विरोधात्मक प्रतीकों का चलन अथवा उलटी का प्रचार हुअा। फारिज' कान से देखने और आँख से सुनने लगा। उससे पहले के सूफी अपने को हक अवश्य कहते थे, पर कभी इस बात का दावा नहीं करते थे कि वे वहाँ पहुँच गए जहाँ किसी अन्य की पहुँच नहीं। फारिज भी अपने को हक कहकर रह जाता तो कोई बात न थी। उसका दावा तो यहाँ उक हो गया कि सलात में इमाम उसोका अनुसरण करता है कुछ वह इमाम का नहीं। सभी लोग उसको ओर मुँह करके नमाज पढ़ते हैं, कुछ काबा की ओर करके नहीं । आत्म-विज्ञापन को गहरी झोक यदि यहीं समाप्त हो जाती तो कोई (१) कबीर बचनावली, भूमिका, पृ० २६ । (२) खय्याम, पृ. २४८ । (३) स्टडीज इन इसलाभिक मिस्टीसीज्म, पृ० २१३ । १४८। " 9 "