पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३३

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तसन्युफ अथवा सूफीमत वह भाव ही बना रह जाता है। गाररस का माधुर्यभाव से सहज संबंध है । किसी के उपास्य में हमारी पूज्य बुद्धि भले ही न हो; पर उसकी रति तो हमारे रोम रोम से उमड़ रही है । भारतीय माधुर्यभाव का आलंबन व्यक्त भगवान् है। उसकी अलौकिक सत्ता हमारा उद्धार करती और लौकिक हमें बराबर अपनी ओर खींचती रहती है। हम अपने आपको रति का अवतार समझते हैं, काम का नहीं। सूफी इस विषय में हमसे कुछ प्रतिकूल हैं। उनकी भक्ति का आधार मदन वा काम है, रति नहीं। मदन एवं रति में पति-पत्नी का संबंध है। वास्तव में एक ही तथ्य के दो पक्षों को काम एवं रति की संज्ञा मिली है। काम को मनोभव वा मनसिज भी कहते हैं । सचमुच काम में वह क्रिया शक्ति है जो स्वधा को बहुधा और एक को अनेक करती है और रति में वह मोहन-शक्ति है जो काम को मुग्ध कर उससे मनमाना काम कराती है । काम अमृत है तो रति आनंद है और दोनों ही ब्रह्म के दो रूप हैं । माधुर्य भाव में रति काम को चाहती है सो मादन भाव में काम रति का पीछा करता है । एक मधुर, कोमल, मंद है तो दूसरा उन्मत्त, भीषण और उग्र । अब माधुर्य एवं मादन भाव के उक्त विवेचन से आप ही स्पष्ट हो जाता है कि सूफियों को प्रेम की दुर्गति क्यों पसंद है । सूफियों को अमृत की आकांक्षा नहीं, प्रियतम के संभोग की लालसा होती है। इस लालसा का मुख्य कारण शामी जातियों के संस्कार में रमा है । जीव मात्र में अमृत एवं अानंद की कामना होती है। सूफी अमृत की चिन्ता में लीन न हुए। उनकी अमृतत्व की जिज्ञासा वहीं शांत हो गई जब उन्हें पता चला कि यह जन्म प्रथम और अंतिम है। निधन के उपरांत जिस शाश्वत स्वर्ग-नरक, सुख-दुःख का विधान उनके मत में था उसमें ईश्वर का कृपापात्र होना ही सब कुछ प्राप्त करना था। निदान सूफी इस चिंता में लगे कि आनंद कैसे मिले। आनंद के विषय में पहले ही कहा जा चुका है कि उसका एकायन उपस्थ है। भारत में उपस्थ एवं तटस्थ के आधार पर भक्ति तथा ज्ञान का विचार बराबर होता रहा और भौति भाँति के आनंदों का स्वरूप भी दिखाया गया ; परंतु इसलाम में उपस्थ ही का स्वागत हुआ और वहाँ केवल सहजानंद का ही विलास छिड़ा।