पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३४

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भावना ११७ अानन्द प्रास्वादन की अभिव्यंजना है। यह प्रास्वादन ज्ञानपरक भी हो सकता है, और वासनात्मक भी। सूफियों ने स्वारिफ की कल्पना कर जिस सत्य का प्रति. पादन किया उसका परिशीलन उनके अध्यात्म में किया जायगा। अभी उनके इश्क का अवलोकन कीजिए । प्रेम-रस के परिपाक में सूफियों की भावना तभी स्पष्ट लक्षित हो सकती है जब रस के सभी अंगों की मीमांसा की जाय । सूफी जिस रति-भाव को ले कर आगे बढ़ते हैं और जिस मादनभाव का परिचय देते हैं, वह वस्तुतः कितना व्यापक और उदार है, उसमें अन्य भाव किस प्रकार निहित होते हैं, आदि बातों का जब तक उचित विचार न होगा तब तक सूफियों का वास्तविक रहस्य न खुलेगा। सूफी प्रेम ही को सब कुछ मान अन्य भावों की उपेक्षा यों ही नहीं करते, वे भली भाँति जानते हैं कि प्रेम ही सब रसों का मूल है। एक सूफी का उद्गार है- "अगर इश्क न होता इंतजाम अालमे सूरत न पकड़ता। इश्क के बगैर जिंदगी वबाल है। इश्क को दिल दे देना कमाल है। इश्क बनाता है, इश्क जलाता है। दुनिया में जो कुछ है इश्क का जलवा है । प्राग इश्क की गर्मी है, हवा इश्क की बेचैनी है, पानी इश्क की रफ्तार है, खाक इश्क का क्रियाम है। मौत इश्क की बेहोशी है, जिंदगी इश्क की होशियारी है, रात इश्क की नींद है, दिन इश्क का जागना है। मुसलिम इश्क का जमाल है, काफिर इश्क का जलाल है, नेको इश्क की कुरबत है, गुनाह इश्क़ से दूरी है, बिहिश्त इश्क का शौक है, दोजन इश्क का जौक है।" सारांश यह कि सूफी दृष्टि में इश्क वह कियाशक्ति है. जो काम की प्रेरणा से उत्पन्न होती है और रति के साथ आनंद के लिए नानात्व का सृजन करती है । हदीस है कि आत्म-दर्शन की कामना से अलक्ष्य ने अपने को प्रत्यक्ष किया । अल्लाह ने अपनी ज्योति से अपने प्रतिरूप आदम को बना कर उसके प्रानंद के लिये उसके अंग से हौवा का निर्माण किया । आदम उस पर ऐसे आसक्त हुए कि उसके कहने से निषिद्ध फल खा कर मर्त्यलोक में पाए । अादम और हौवा के समागम से मानव सृष्टि चली । श्रुति भी है कि परम पुरुष ने रमण के लिये