पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३५

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तसम्धुफ अथवा सूफीमत स्वधा को द्विधा कर बहुधा का विधान किया। सृष्टि का मूल कारण कुछ भी हो, पर इससे इतना तो स्पष्ट ही है कि आनंद की कामना से ही मिथुन का व्यापार बढ़ा। इस मिथुन के बारे में अग्निपुराण का मत है कि सहजानंद की प्रेरणा से अहंकार का उदय हुआ । अहंकार ने अभिमान के आधार पर राग को जन्म दिया। अहं एवं पर के विकास में परस्पर जो प्रश्न उठे उनमें विभेद होने के कारण द्वेष का उदय हुआ। इस प्रकार राग-द्वेष के द्वंद्व पर संसार का संसरण चला। राग उपस्थ की प्रेरणा एवं द्वेष तटस्थ का विधान करने लगा । सूफी जिसको इश्क कहते हैं वह वही राग है । राग एवं द्वेष की जगह सूफी जमाल एवं जलाल का नाम लेते हैं। अस्तु, सच पूछिए तो द्वेष की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। वह तो राग का मान ही ठहरा । भय एवं विस्मय के मूल में भी राग ही काम करता है। भय में हम आलंबन से विमुख होते हैं और विस्मय में उससे चकित हो ठिठक से जाते हैं। तो भी हमारी इस दशा का मूल कारण वस्तुतः वह राग ही है जो हमारे और उसके बीच में कोई न कोई संबंध स्थापित किए रहता है। सूफियों की भक्ति-भावना में यह स्थिति प्रत्यक्ष दिखाई देती है। उनमें अल्लाह का भय इसलिये बना रहता है कि कहीं वह विमुख न हो जाय । उनके इस भय का प्रधान कारण वह राम है जो प्रियतम के साक्षात्कार का विधान करता है । यह वह भय है जिसका संचार प्रीति के कारण होता है । जब प्रियतम के कृत्यों में उन बातों का दर्शन मिलता है जो आश्चर्य- जनक हैं तब उनको देख कर हम विस्मय में पड़ जाते हैं और सहसा कुछ निर्णय भी नहीं कर पाते । अंत में इस भय और इस विस्मय का परिणाम यह होता है कि हमें अपनी तुच्छता का बोध हो जाता है और हम प्रेम में और भी प्रपन्न हो जाते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि उस सारे प्रपंच का मूल कारण अहंकार ही है, अतः हम उसीको मिटाना चाहते हैं । प्रकृत आत्म-विश्लेषण से भलीभॊति अवगत हो जाता है कि अमृतत्व एवं श्रानंद की कामना ही हमारे कण कण में बोल रही है। हम आनंद और शाश्वत जीवन के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते। अमृतत्व एवं आनंद का एकमात्र