पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१३७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत ढाल और उसके काम-कौतुक को न समझते हों । जव हम यह भलीभाँति जानते हैं कि उसी की कृपा से हम उसकी ओर बढ़ रहे हैं तब उसके कृत्यों से भयभीत नहीं हो सकते उलटे उसकी ओर और भी बढ़ ही जाते है और इसी से अंत में उस तक पहुँच भी जाते हैं । अब उसके चमत्कारों से हमें आश्चर्य नहीं हो सकता । हम उसके भेद से भलीभाँति परिचित जो हो गए हैं । रहस्य तो वह उन अंधों के लिये है जो आँखें फाड़ उसको हाथ पर रखकर देखना चाहते हैं। हम तो जानते हैं कि चमत्कार उसके मोहन मंत्र क्या, वह वशीकर मंत्र है जो हमारे चित्त को चमत्कृत कर अपनी मुट्ठी में कर लेते हैं। उसके दिए हुए कष्टों से हम क्रुद्ध नहीं हो सकते ; क्योंकि हम जानते हैं कि अंतराय उसके दूत हैं जो हमें मार्ग दिखाने के लिये ही आते हैं । हम उनका स्वागत करेंगे और दूने उत्साह से और भी प्रेम- पथ पर दृढ़ता के साथ अग्रसर होंगे। जुगुप्सा का हमको पता नहीं। कारण उसकी विभूति और उसकी अदा हमको इतनी पसंद है कि हम उसके अतिरिक्त कुछ और देखते ही नहीं, फिर घृणा किससे हो? शम की भी हमें इच्छा नहीं, हमें तो आत्मक्रीड़ा ही रुचती है। रति के प्रसार में हंसना-रोना ही हमें भाता है । हम रोकर उसे हँसाते और हँसकर उसे रुलाते और फिर दोनों हिल-मिल कर सच्चा आनंद उठाते हैं। बस हमारे लिये सर्वत्र रति ही रति है। सूफियों के प्रकृत विभावन ने रति के व्यापार को इतना प्रबल किया कि उसके सामने विरति का सारा पक्ष निर्वल पड़ गया। भारतीय उपासना अथवा माधुर्य भाव में विरति का पक्ष कुछ-न-कुछ बना ही रहता है। भारतीय भक्त परमात्मा के व्यक्त स्वरूप में अनुरक्त हो संसारसे विरक्त पड़ जाते हैं। उनको किसी व्यक्ति विशेष से प्रेम करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। परन्तु, सूफियों में यह बात नहीं है। उनके मत में सामान्य प्रेम विशेष प्रेम का सोपान है. और. किसी व्यक्ति के प्रेम में पड़कर ही परम प्रेम का अनुष्टान भलीभाँति किया जा सकता है। यही कारण है कि उनके प्रेम-प्रलाय में श्रालंबन के यथार्थ रूप का बोध नहीं होता । उनकी रतिके श्रालंबन स्त्री, अमरद और अल्लाह के अतिरिक्त मुंरशिद, पीर और रसूल भी होते हैं । अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य आलंबन