पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१४०

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भावना 1 लिखा वा प्रलाप किया है वह साहित्य संसार का अनूठा रत्न है। उन्माद के जो कृत्य प्रेमियों से बन पड़े हैं उनका प्रदर्शन प्रायः किया जाता है। उन्माद की अोट में ही जुनैद बच रहा और हल्लाज उसका सहारा न लेने से ही प्राणदंड का भागी बना । सूफी अपने को मजनून घोषित करते हैं। उनकी व्याधि की दवा नहीं । प्रियतम के अतिरिक्त उनकी रक्षा अन्य कर ही नहीं सकता। सूफी न तो मरते हैं न जीते, बस सदा उसी प्रियतम को याद करते हैं। याद करते करते समाधि लग जाती है। इनको हाल पा जाता है। हाल की इस दशा में प्रियतम का साक्षात्कार हो जाता । इस महानिद्रा में जो महामिलन होता है, सूफी उसी को मरण कहते हैं। इसी से मरण का वर्णन सूफी खूब करते हैं । उनका मरना गोर का बास नहीं, प्रियतम का बुलावा है । सूफी सज-धज के साथ पयान करते हैं और उनका प्रेत प्रियतम के कटाक्ष पर कुरबान होता है । यही उनकी उपासना का अंत अथवा मुक्ति है। सूफियों की जिन दशाओं का वर्णन किया गया वे विप्रलंभ की दशाएँ सूफियों की धारणा है कि जीवात्मा परमात्मा के वियोग में व्याकुल है और उसी की वेदना में व्यग्र है । जीव को अपने प्रियतम का पता उसी की कृपा से चला। कभी वह उसके साथ था, उससे प्रतिज्ञाबद्ध हो चुका था'; अतः उसको पहचानने में देर न लगी। उसका परिचय तो मिल गया, किंतु वह न मिला 1 उसी की खोज में सूफी निकल पड़े हैं। खोजते खोजते जब वे थक कर सो जाते हैं तब उनका प्रियतम धीरे से उनके पास आता और संजीवन रस छिड़क कर उनको सचेत कर देता है। उनको इस उद्बोधन से शांति नहीं मिलती, उनका विरह और भी बढ़ जाता है। आग को आहुति मिल जाती है। फिर तो जहाँ कहीं देखते हैं प्रियतम ही का रंग दिखाई देता है। परंतु कभी वह रंगी हाथ नहीं आता। अंत में उनसे कोई कह पड़ता है कि जिसके पीछे तुम मर रहे थे, वह कहीं अन्यत्र नहीं, तुम्हारे ही हृदय में है । जहाँ कहीं तुम देखते हो उसी की झलक दिखाई देती है, पर वह सदा परोच ही रहता है । कारण, जब तुम नहीं होते तब वह हो जाता है और जब वह हो जाता है तब तुम नहीं रहते। फिर वियोग कैसे मिटे ? स्वप्न वा समाधि में उसके साक्षात्कार का मुख्य कारण यही है कि इस दशा में तुम अथवा तुम्हारा .