पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१४३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत बार बार विवश होकर उसी की ओर बढ़ते श्री क्षुब्ध हो कष्ट भोगते हैं तब हमें कुछ निर्वेद सा हो जाता है और अपनी दशा में शांति नहीं मिलती। हम ग्लानि में पड़ जाते हैं। यदि हमारी यह स्थिति न होती तो शायद हम परम प्रेम की और न मुड़ते और सदा विषय-वासना में ही लीन रहते। यदि हमें अपनी चिंता अथवा भविष्य के अमंगल की आशंका न होती तो हम किसी की शरण न लेते। यदि हमें जीवन का मोह, काल का त्रास, मरण का शोक आदि न होता तो हम कब किसी को याद करते ! सूफियों ने प्रेम के सहारे प्रियतम के मार्ग में प्रस्थान जो किया तो उनको अन्य भावों का भी प्रबंध करना ही पड़ा। स्वप्न का इसलाम में बड़ा महत्व है। वह साक्षात्कार का उत्तम साधन समझा जाता । स्वन की दशा में प्रियतम की जो झलक दिखाई देती है, अपस्मार की परिस्थिति जो उसका पालोक प्रतीत होता है, उन्माद में जो दिव्य शक्ति दर्शन देती है, प्रेम-मद में जो उमंग उठती है, प्रियतम की जो स्मृति बनी रहती है, निद्रा में जो उसका स्पर्श होता है उसके सहारे हम प्रियतम के प्रसाद का पात्र बनते और उसकी ओर खींचते जाते हैं। हमारी इस मति का प्रवर्तक, इस उत्सुकता का विधाता और इस उत्कंठा का नायक एकमात्र वही है जिसके प्रम में हम विकल हैं । हम देखते हैं कि अन्य भी उसकी कृपा के पात्र हो रहे हैं और उन पर उसकी विशष दृष्टि है । बस हम अमर्ष, ईर्ष्या, असूया श्रादि भावों के शिकार हो जाते हैं और विषाद में पड़ जाते हैं। हमारे आवेग का ठिकाना नहीं रहता, हम उग्र हो जाते हैं । हमको पता चलता है कि हम उसके प्रेमी नहीं, हम तो उसकी विभूति के भूखे हैं। बस हम तुब्ध हो जाते हैं और ब्रोडा हमें आ घेरती है। फिर हमें विवोध होता है कि हमारी संकीर्णता हमें इस प्रकार प्रियतम से अलग करना चाहती है, नहीं तो वास्तव में तो सब कुछ उसी का खेल है। हम हर्ष से फूल उठते हैं और चपलता के साथ उसीमें तल्लीन होना चाहते हैं। हमें प्रियतम मिल जाता है। सूफियों के मानस में चाहे जितने भाव उठे, चाहे जितनी दशाओं का उन्हें स्वागत करना पड़े, पर आदि से अंत तक सदा, सर्वथा, सर्वत्र उन्हें प्रेम-सागर में