पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१४६

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अध्यात्म १२६ और मुहम्मद भी आर्य-संस्कृति से अछूते न बचे थे। यूहन्ना और हल्लाज ने तो प्रत्यक्षतः उसीका पल्ला पकड़ा। कहना न होगा कि उन्हीं के आधार पर मसीही और इसलामी अध्यात्म आगे बढ़े और धीरे धीरे स्वतंत्र अध्यात्म बन गए। मीमांसकों ने चोदना को धर्म का लक्षण माना है। इसलाम इस लक्षण का पक्का पावंद है। उसका मूलमंत्र इसी पर अवलंबित है। अल्लाह के अतिरिक्त अन्य देवता नहीं और मुहम्मद उसका दूत, यही तो इसलाम की दीक्षा है ? इसके अनुष्ठान में जो कर्मकांड विहित है उनमें अध्यात्म का प्रवेश नहीं। उनको तो विधि का सीधा पालन कहना चाहिए। रही इसलाम के मूलमंत्र अथवा दीक्षा की बात । सो वास्तव में उसके दो पक्ष हैं-प्रथम अल्लाह और द्वितीय मुहम्मद। इन्हीं दो पक्षों पर इसलाम ठहराया गया है। मुहम्मद के दूतत्व का अभिप्राय ही चोदना वा आदेश है । इस आदेश वा अनुशासन की प्रेरणा बाहरी है भीतरी कदापि नहीं । इसमें मानने की विधि है सोचने का विधान नहीं । अल्लाह की अनन्यता भी कुछ इसी ढंग की है; भीतर से उसका सीधा संबंध नहीं। किसी दैवी आज्ञा के कारण अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य देवता को न मानना एक बात है और गहरे आत्म- चिंतन के फलस्वरूप किसी अन्य सत्ता को स्वयं स्वीकार न करना उससे सर्वथा भिन्न, दूसरी बात । प्रथम इसलाम है तो द्वितीय तसव्वुफ । इसलाम यह नहीं कहता कि अल्लाह के अतिरिक्त और कोई सत्ता नहीं। उसकी दृष्टि में तो अल्लाह के अतिरिक्त महाभूत, फरिश्ते, जिन्न आदि अन्य सत्ताएँ भी हो सकती हैं और हैं भी, पर वे विश्व के अधीश्वर या उपास्य नहीं । उधर तसव्वुफ का कहना है कि परमात्मा के अतिरिक्त और कोई परम सत्ता हो ही नहीं सकती । सृष्टि में जो कुछ गोचर होता है सब परमात्मा का ही व्यक्त रूप है, कुछ और नहीं । सूफियों में अध्यात्म का विकास चाहे जिस ढब से हुआ हो, पर उसके चलने का मार्ग सदा इसलामो रहा है । हम उस तसव्वुफ को तसव्वुफ भले ही कह लें जिसमें अल्लाह एवं उसके रसूल की उपेक्षा हो, पर सूफी उसको सच्चा अथवा (१) चोदनालक्षणोऽथों धर्मः ( जै० सू० १. १. २)। ९