पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५१

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१३४ तसव्वुफ अथवा सूफीमत मत वह तो हमारे निकटतम है। प्रकृत उद्गारों का मूलमंत्र चाहे कुछ भी हो, पर उनसे इतना तो प्रकट ही है कि अल्लाह की यह व्यापकता उसको देशकाल से मुक्तः कर देती है। अब इसमें तनिक भी संदेह नहीं रहा कि इस प्रकार विज्ञ सूफियों को कुरान में ही अल्लाह के व्यापक और अंतर्यामी स्वरूप का संकेत मिल गया और वे उसीको सत्य समझ उसके वास्तविक स्वरूप का निदर्शन, कुरान के समस्त पदा की संगति बैठा, व्यंजना के आधार पर करने लगे। तो भी उनके चितन का मार्ग स्वतंत्र न था । वे अन्यत्र से सामग्री लाते थे फिर भी कहते यही थे कि उनके अध्ययन का आधार स्वयं कुरान ही है और वस्तुतः उन्हींका मत कुरान का असली मत भी है। कुरान भी किसी प्रकार प्रत्यक्ष या परोक्ष सीधे या व्यंग्य रूप से उनके के अनुकूल अर्थ दे देती और हदीस से तो उन्हें पूरी सहायता ही मिलती थी। कारण कि उसकी कहीं इति न थी। वह नित्य प्रति गढ़ी जा रही थी और सभी उससे अपना इष्ट साध रहे थे। कुरान में अल्लाह के जिन गुणों का विशद वर्णन किया गया था, सूफियों ने उनका विश्लेषण किया तो उन्हें स्पष्ट हो गया कि उनमें से कुछ तो उसकी सत्ता से संबंध रखते हैं और कुछ उसके शासन या व्यापार से । उनको सूझ पड़ा कि इस प्रकार अल्लाह के गुणों को किसी पद्धति पर विभाजित कर लेना उसके स्वरूप के विवेचन में सहायक होगा। निदान जिली ने उनको चार भागों में विभक्त कर दिया। उसने देखा कि अल्लाह की एकता, नित्यता, सत्यता का उसकी सत्ता से संबंध है, अतः उनको उसकी 'जात' का गुग्ण कहना चाहिए ; उदारता, क्षमा आदि गुणों से उसके माधुर्य का बोध होता है, अतः उनको उसके 'जमाल' का द्योतक मानना चाहिए, और शक्ति, शासन आदि गुणों से उसके ऐश्वर्य का ज्ञान होता है, अतः उनको उसके 'जलाल' का बोधक समझना चाहिए, एवं (१) दी अली डेवेलपमेंट आव मोहम्मेहनीज्म, पृ० १६६ । (कुरान,२.१८२,५०-१५, ५१-२०-२१, २-१०१।) (२) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, पृ० १०० ।