पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५२

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अध्यात्म बाह्य और प्राभ्यन्तर, प्रथम और अंतिम अादि विरोधी गुणों से उसकी अद्भुतशक्ति का भान होता है, अतः उनको उसके 'कमाल' का गुग्ण कहना चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि जिली ने अल्लाह के समस्त गुणों को सचमुच 'जात', 'जमाल', 'जलाल' और 'कमाल' में विभक्त कर दिया जिन्हें हम क्रमशः 'सत्ता', 'माधुर्य', 'ऐश्वर्य' तथा 'अद्भुत' के रूप में देख सकते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि जिलो के उक्त गुणों के विवेचन में दो पक्ष है-अल्लाह और इंसान वा जीव । अल्लाह और जीव के संबंध का आभास जमाल एवं जलाल में मिलता है। निदान कुरान वा इसलाम में इन्हीं गुणों पर विशेष ध्यान दिया गया है। 'जात' एवं 'कमाल' की पूरी व्याख्या इसलाम में नहीं मिलती। हृदय के लिये अल्लाह का जमाल या जलान पर्याप्त है; उनमें उसके राग- द्वेष की विधि है, पर मस्तिष्क या बुद्धि के लगाव के लिये 'जात' एवं 'कमाल' का निरूपण आवश्यक है । अल्लाह के जमाल और जलाल को ले कर भावना किस पद्धति पर चली और उनके द्वारा राग तथा विराग का कैसा परिपाक हुआ आदि प्रश्न जो आप ही उठ पड़ते हैं तो कुरान में उन कृत्यों का विधान भी मिल जाता है जिनके पालन अथवा उल्लंबन से व्यक्ति जमाल या जलाल का पात्र बनता है। किंतु उसमें अल्लाह की जात और उसके कमाल का पक्का विधान नहीं मिलता। अल्लाह की एकता, नित्यता और सत्यता से हमारा क्या संबंध है ? इसका विचार कुरान में कहाँ है ? क्या हम भी अल्लाह की भाँति ही एक, नित्य और सत्य हैं ! हमारे भी एकता, नित्यता, सत्यता आदि गुण हैं ? इसलाम इस विषय में या तो मौन रह जाता है या निषेधात्मक उत्तर देता है। कमाल के विषय में भी यही बात है। निदान, 'जात' और 'कमाल' के निरूपण में सूफियों ने कमाल किया और कुरान के कथित संकेतों के सहारे इसलाम में वास्तविक अध्यात्म का प्रसार किया । 'अन-अल-हक्' इसीका परिपाक ही नहीं अपितु साक्षी भी है । जीव हक बना और अपने को सत्य प्रतिपादित करने लगा। प्रश्न उठा कि नाना प्रकार के दृश्य जो उसके सामने उपस्थित हैं और उसके आगे-पीछे, इधर- उधर पड़े दिखाई देते हैं, उनकी वास्तविक सत्ता क्या है ? अल्लाह और जीव की