पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत उसमें सागर की भीति तरंगें उठने लगी, जिससे स्थूल द्रव्य फेन के ढंग पर ऊपर छा गया। अल्लाह ने उससे सतपूथिवी की रचना की। उसके सूक्ष्म तत्व वाष्प की भाँति ऊपर उठे। अल्लाह ने उनसे सतलोक और फरिश्तों की रचना की, जो उनके अधिदेव हुए। फिर शेष जल को सप्तसागर में विभक्त कर दिया । यही सृष्टि का प्रसार है। जामी' का मत है कि अल्लाह परम सौंदर्य है और वह प्रेम चाहता है। प्रेम से प्रभावित होकर उसने अपने मुख का आदर्श लिया और उसमें अपना रूप अपने आप पर व्यक्त करने लगा। वह द्रष्टा और दृश्य दोनों था। उसके अतिरिक्त किसी ने विश्व को नहीं देखा। सर्व अद्वय था। मुष्टि गर्भ की भाँति अभाव में शायन करती थी। प्रियतम की दृष्टि ने जा नहीं था उसको रूप दिया। यद्यपि उसके गुण उसे पूर्णतः व्यक्त थे तथापि उसको उनको प्रकट करना अभीष्ट था। अतएव देश-काल की रचना कर उसने एक उपवन का डौल डाला, जिसका प्रत्येक पत्ता उसके कमाल को प्रत्यक्ष करता है। जामी की दृष्टि में विश्व सत्य का प्रत्यक्ष रूप है और सत्य विश्व का परोक्ष भीतरी मूल तत्त्व । विश्व विकास के पूर्व सत्य से अभिन्न था और सत्य विकास के अनन्तर विश्व से अभिन्न है। इस प्रकार अल्लाह और विश्वकी अभिन्नता तो सिद्ध हुई, पर जीव का पता अभी तक न चला । अल्लाह ने आदमी को अपना प्रतिरूप बनाया और उसमें अपनी रूह फूंक दी। अरबी का मत है कि श्रात्मदर्शन के लिये अल्लाह ने जिस विश्व को रचा वह अंधा दर्पण था, अतः अल्लाह को उसमें अपना रूप गोचर नहीं होता था। इसलिये उसने आदम का निर्माण किया, जो उसी का प्रतिरूप था । बस अल्लाह ने अादमी में अपना रूप देखा और इसी से इंसान अल्लाह की दृष्टि है और इसी से उसको 'इंसान' कहते भी हैं। इंसान के द्वारा ही अल्लाह सृष्टि का अवलोकन तथा जीवों पर दया करता है। (१) दी मिस्टिक्स पाव इसलाम, १०८०-१ । (२) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीमीज्म, पृ० १५५-६ ।