पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१६१

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत लोक-संग्रह के भाव बनाते रहते हैं । फलतः मुहम्मद साहब सूफियों की दृष्टि में केवल उम्मी रसूल ही नहीं रहे, वे उनके प्रिय, रक्षक, तारक, हिरण्य-गर्भ, सगुण और ईश्वर सभी कुछ हो गए । अल्लाह के आप महबूब हुए और आप ही के लिये सृष्टि का यह सारा प्रसार हुआ । आप में 'जात' (सत्त्व) 'सिफत' (गुणा) और 'इस्म' (संज्ञा) का समन्वय कर दिया गया और आप के संकेत पर संसार चलने लगा। सूफियों की दृष्टि में आप 'कुब' हैं, पुरुषोत्तम हैं। आपका नूर सृष्टि का उपादान और आप उसके निमित्त हैं । आप अल्लाह की वह प्रतिमा हैं जिसके अनुरूप अादम को रूप मिला । वस्तुतः ज्ञानियों की 'माया' भक्तों की 'शक्ति' और सूफियों के 'नूर' का सृष्टि-व्यापार में एक ही स्थान है । ऊपर जो कुछ कहा गया है उससे स्पष्ट है कि मुहम्मद अल्लाह और इंसान के संधिस्थल हैं। उनके नूर से अल्लाह का साक्षात्कार किया जा सकता है। जिली' का मत है कि लोक-मंगल के लिये समयानुकूल मुहम्मद साहब लिबास धारण करते हैं। जिली मुसलमान होने के कारण 'अवतार' से चिढ़ता है और कठोर अाग्रह साथ कहता है कि उसके इस कथन को लाग हुलूल (अवतार) न समझ लें । उसका कहना है कि मुहम्मद साहब ही शेख के लिबास में उसे गोचर हुए थे। और वही अरब में मुहम्मद के रूप में प्रकटे भी थे। जिली के 'लिबास' को हम 'उपाधि' का रूपांतर भर समझते हैं। वास्तव में मुहम्मद वेदांतियों के सोपाधि ब्रह्म वा ईश्वर हैं जो धर्म की संस्थापना और लोक-रक्षा के लिये संसार में अवतार नहीं लेते प्रत्युत मुहम्मद की उपाधि धारण करते हैं। तात्त्विक दृष्टि से अवतार अविद्या और उपाधि विद्या वाचक शब्द है । अस्तु, जिली के लिबास में वेदांतियों की उपाधि का पूरा प्रसार है । जिली की दृष्टि में कुत्ब के लिबास में मुहम्मद सदा लोक रक्षा करते हैं और सूफी मात्र कुरब के सत्कार को आराधना समझते भी हैं। जीव के संबंध में स्वभावतः यह प्रश्न उठता है कि वह कष्ट में क्यों पड़ा है। अल्लाह के अतिरिक्त यदि और कोई सत्ता नहीं है तो पाप-पुण्य, धर्म अधर्म का (१) स्टडीज़ इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, पृ० १०५ ।