पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१६८

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अध्यात्म उसके मर्म का ठीक-ठीक पता नहीं हो पाता, पर उसके देखने से अनुमान यही होता है कि हो न हो उनका कल्य उपनिषदों का हृदय है । 'हृदि अयम्' से हृदय की सिद्धि मानी जाती है। उपनिषदों के हृदय में वह गुण है जो सूफी कल्ब में प्रतिष्टित करते हैं । "हदयन हि रूपाणि जानाति हृदये ह्येव रूपाणि प्रतिष्ठितानि भवन्ति ... हृदयेन हि सत्यं जानाति हृदय येव सत्यं प्रतिष्ठितं भवति ।"' निदान यही 'हृदय' तसन्युफ का 'कल्ब' है। अन्यथा कुछ और नहीं । हृदय के संबंध में अन्ताह का प्रवचन है कि पृथिवी और अंतरिक्ष मुझे धारण नहीं कर सकते, किंतु भक्तों का हृदय मुझे धारण कर लेता है। सूफियों की इस कथन पर पूरी आस्था है। ये काज में अल्लाह को धारण करते हैं। वस्तुतः कल्प अल्लाह का प्राधार या सत्य का निवास ही नहीं, उसका निदर्शक भी है। दर्पण रूप को ग्रहण कर उसका विशंप भी तो करता है ? अस्तु, वह सत्य का अधिष्ठान और आत्मा का करण है। सूफी इसीमें सत्य का साक्षात्कार करते और अपने को धन्य समझते हैं। कल्ब के संबंध में इतना और जान लेना चाहिए कि वह वास्तव में भौतिक पदार्थ है। सफी उसको अभौतिक इस दृष्टि से कहते हैं कि उस पर अल्लाह का प्रतिबिंब पड़ता है, और उसीके द्वारा उसका साक्षात्कार भी होता । परंतु सूफी यह भी कहते हैं कि भूनमात्र अल्लाह का दर्पण है, जिसमें उसीकी झलक दिखाई पड़ती है। फिर कल्ब को अभौतिक सिद्ध करने का प्रयोजन ही क्या ! वेदांतियों ने भी हृदय-तत्व को अंतःकरण की संज्ञा दी है। उन्होंने मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार को अंतःकरण कहा, पर माना उसे भौतिक ही है। निदान 'कल्ब' को अभौतिक कहने की कोई आवश्यकता नहीं। कल्ब के भीतर एक सूक्ष्मतम करण होता है। सूफी उसको 'सिर' कहते हैं । (१) वृ० भा० उ०, 2० म०, न० प्रा०, २०, २३ । (२) दी मिस्टिक्स पाव इसलाम, पृ०६८ ।