पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१६९

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१५२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत सिर की व्याख्या कुछ कल्ब से भी कठिन है। अबू सईद का मत है कि अभाव, उत्कंठा और उद्वेग से व्याकुल हृदय में अल्लाह अपने जमाल से जिस तत्त्व को जन्म देता है वही सिर है। सिर्र उसके जमाल का प्रसाद है, जो इंसान को निष्काम, निवृत्त, संन्यस्त अथवा मुन्नलिस बना देता है। सिर्र का प्रभाव ही इस्खलास है। सिर्र ईश्वरीय है, शाश्वत है । उसका विनाश नहीं होता । वह इंसान में अल्लाह की धरोहर है। सिर्र के संबंध में हमारी धारणा है कि उसका बाह्य सत्त्व और अभ्यंतर अनुभूति है। अभ्यास एवं वैराग्य के द्वारा सत्त्व शुद्ध हो जाता है और उसमें परमात्मा की अनुभूति होती है। सूफी इसी को प्रियतम का दीदार' कहते हैं। निदान कहना पड़ता है कि यदि कल्ब हृदय है तो सिरै सत्व है। सत्त्व और हृदय का अपनी साधना में जो स्थान है वही तसव्वुफ में सिर और कल्ब का । सिरं सब को नसीब नहीं होता। उसके पात्र चुने हुए लोग ही होते हैं । कल्ब भी सबका स्वच्छ नहीं रहता, उस पर भाँति भाँति के प्रावरण पड़े होते हैं। चाहते तो सभी हैं, पर सबको साक्षात्कार क्यों नहीं होता ? सूफी एक स्वर से उत्तर देते हैं 'नक्स' के कारण । नफ्स वास्तव में है भी बड़ी बला। कदाचित् यही कारण है कि साधकों में किसी ने उसे लोमड़ी के रूप में देखा तो किसी ने उसे श्वान के रूप में पाया, और किसी ने उसे चूहा समझा तो किसी ने उसे सर्प ही घोषित कर दिया। सारांश यह कि सभी लोगों ने उसे किसी न किसी मूर्तरूप में देखा और उसकी कपट-लीला को व्यक्त करने का प्रयत्न किया। जो हो, सूफी सचमुच नफ्स को इबलीस की दूती अथवा शैतान की कुहिनी समझते हैं जो प्रेमी को प्रियतम से विमुख कर उसके हृदय में अन्यथा भाव भरती है। नफ्स विषय-वासना को सूंघती, भोगविलास को हूँढती, और तरह तरह की काटछाँट करती फिरती आत्मवंचना में लीन रहती है। इसीसे अन्तिम रसूल ने नफ्स को इंसान का सब से भयंकर शत्रु कहा और उससे सावधान रहने की अपने बन्दों को सलाह दी। नफ्स इंसान को (१) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, पृ० ५१ । (२)दी मिस्टिक्स आव इसलाम, पृ० ३९-४० ।