पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१७३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत प्रतिबिंबवाद से सूफियों की कामना पूरी हो गई । सूफी जीजान से चाहते थे कि इसलाम के सामने कोई ऐसा वाद रखें जो इसलाम की श्रद्धा और भक्ति को समेट सके। प्रतिबिंबवाद में यह बात मिल गई। मुसलिम प्रादम को अल्लाह का प्रतिरूप मानते ही थे। उनके मत में आदम में अल्लाह की रूह थी ही। फिर तो सूफियों ने भी इसी के आधार पर आदम को अल्लाह का प्रतिबिंब बना दिया । उन्होंने कहा कि यदि सृष्टि का दर्पण न होता और अल्लाह अात्मदर्शन की कामना न करता तो उसका प्रतिबिंब अर्थात् इंसान भी न होता । अस्तु, इसान तभी तक उससे अलग दिखाई देता है, जबतक वह सष्टि के दर्पण में अपना रूप देखना चाहता है। जब कभी उसने अपनी इच्छा का लोप किया कि इंसान का रूप जाता रहा और वह अल्लाह में मिल गया। तब तो उसके अतिरिक्त और कुछ भी न रहा। इंसान भी वही हो गया जो कि वह था। यही सूफियों का 'अन्-अल-हक अथवा 'अहं ब्रह्मास्मि' है । यही तसव्वुफ का चरम उत्कर्ष और सूफी-दर्शन की पराकाष्ठा है । प्रतिबिंबवाद ही तसव्वुफ का वास्तविक वाद है कुछ अद्वैतियों का खरा अद्वैत- वाद नहीं । वेदान्ती 'अद्वैत' का अर्थ ठीक वही नहीं समझते जो सूफी समझते हैं। दोनों की दृष्टि वा दर्शन में कुछ भेद भी है कुछ एकता भी। हम इस भेदाभेद की चर्चा फिर कभी करेंगे । यहाँ इतना ही पर्याप्त है ।