पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१७४

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९. साहित्य अरब स्वभावतः कविता के प्रेमी थे। वह कबीला धन्य समझा जाता था जिसमें कवि जन्म लेते थे। शाइर अलौकिक शक्ति-संपन्न व्यक्ति समझा जाता था। उसका प्रधान काम युद्ध में प्रोत्साहन देना और वोरों का गुणगान करना था । उसकी कविता को सस्वर पढ़ने के लिये उसके साथ रावी वा चारण भी रहता था, जो लय के साथ उसे पढ़कर जनता पर जादू का प्रभाव डालता था। अरब कवियों का मुख्य विषय यद्यपि सग्राम ही था तथापि वे प्रेम, मुरा और स्रोत आदि पर भी कविता कर लेते थे। प्रिया के रूपरंग और नखशिख के वर्णन में अरब कुछ उठा नहीं रखते थे ; किंतु उसके शीत और सद्गुणों पर बहुत ही कम ध्यान देते थे। स्त्रियाँ भी कविता करती थीं। उनमें करुण रस की प्रधानता रहती थी। गजल में प्रिय-प्रिया के संभाषण होते थे और उसमें प्रेम का पूरा प्रसार रहता था। प्रेम-प्रसंग की प्राचीन गजलों में जो भाव व्यक्त हुए हैं उनका श्राज हकीकी अर्थ भी लगाया जा सकता है। सूफियों को गजल में प्रेम और शराब का जो रंग मिला उसी को उन्होंने कुछ और भी चोखा वा अलौकिक कर दिया। निदान सूफी कवियों का प्रेम-प्रलाप इतना सहज और स्वभाविक होता है कि उसको अलौकिक समझने का का कोई प्रकट अाग्रह नहीं होता। पाठक उसे मजाजी या हकीकी कुछ भी समझ सकते किन्तु कितने ही कवियों को अपनी कविता की व्याख्या इसीलिये करनी पड़ी कि लोग उसके हकीकी अर्थ को नहीं समझते थे और केवल उसके मजाजी अर्थ पर ही लटक रहते थे। अरबी मक्का की किसी रमणी 'पर मुग्ध था। उस पर उसने जो कविता लिखी उसका अन्त में हकीकी अर्थ निकाला गया। कहने का तात्पर्य है कि प्राचीन अरब कविता में रति के कुछ ऐसे प्रसंग मिल जाते हैं जिनकी व्याख्या (१) एलिटरेरी हस्टरी आव दी एरन्स, पृ० २३६ ।