पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१७५

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१५८ तसव्वुफ अथवा सूफीमत अरबी की पद्धति से हकीकी भी की जा सकती हैं। अरब में इसलाम के पहले भी प्रेम और सुरा का वही राग आलापा जाता था जिसे सूफियों ने प्रतीक के रूप में ग्रहण किया। 'मोअल्लकात में उमर की जो रचना रक्षित है उसके, कतिपय पद्ध इतने अनूठे और भव्य हैं कि उनका आज वही अर्थ लगाया जायगा जो खय्याम या हाफिज के पद्यों का लगाया जाता है। उनमें प्रिया से वही शराब मांगी गई है जिसके सेवन से दुःखदर्द सब भूल जाते हैं । अरब इसलाम या मुहम्मद साहब से पहले अल्लाह की तीन बेटियों की पारा- धना करते थे। उनमें 'लात' सर्वप्रधान थी। मुहम्मद साहब ने लात का विश्वंस कर दिया किन्तु अरब इसलाम कबूल करने पर भी उसे भुला न सके। किसी न किसी रूप में उसको श्राराधना उनमें होती ही रही। उसमें विशेषता इतनी अवत्य आ गई कि अब दे लात की जगह अल्लाह को प्रेमपात्र समझने लगे। अस्तु, अरब में भी वही बात घटी जो इसराएल की संतानों में घट चुकी थी। इसलाम में भी गीत-ग्रंथन किया गया। सुलेमान के गीतों के संबंध में हम पहले भी कुछ कह चुके हैं। 'किता- वुल' अगानि' में उन्हीं के ढंगके प्रेम का कीर्तन किया गया है। उसमें भोगियों को भोग और योगियों को योग भी मिल सकता है। उसमें माजाजी के साथ ही साथ हकीकी का भी दावा किया जा सकता है । अस्तु, इसलाम ने अरबों को नागर बना (१) अरबी की उक्त रमणी पर रचना का भाव है-"मेरी जान कुरबान उन गोरी गोरी शमीली अरब लड़कियों पर निनोंने खन यमानी और हजर असबद के बोस के कत मेरे साथ ठठोल किया। जब मै उनके पीछे दैरान व सरगर्दान फिरता हूँ तो मुझे उनका पता उनकी खुशबइयों से चलता है। मैंने उनमें से एक के साथ जो ऐसी इसीन थी कि जिसका कोई नजीर न था मोहब्बत से लतीफ मुफ्त की। अगर वह अपने चेहरों से नकाब उठाकर उसको जाहिर कर दे तो तू ऐसी रोशनी देखेगा कि गोया माफ- ताब बिला तौय्युर टूलूशा हो रहा है। उसकी बबीन (लिलाट) रोशन आफताब है और उसकी जुरक स्याह शव तारीक । क्या ही प्यारी सूरत है जिसमें रोज्ञवशव का इज्तिमान ( जमघट ) है।" (तारीख फलासिफतुल इसलाम, पृ० ४०१) ।