पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८४

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साहित्य जुनैद आदि ज्ञानियों के निबंधों का तो उसने अध्ययन ही किया था। इलाज की प्रसिद्ध पुस्तक 'किताबुलतवासीन' में भी तसव्वुफ का विशद वर्णन है । पर तसव्वुफ का तात्त्विक विवेचन जितनी गंभीरता के साथ अरबी ने क्रिया वैसा कभी इसलाम में न हुअा। उसने ‘फतृहात मक्किया' और 'फुसूसुल्हिकम' में जिस तथ्य का निरूपण एवं सत्य का उद्घाटन किया वह आज भी इसलाम में अपना सानी नहीं रखता। वह तर्क-वितर्क से बहुत कुछ निर्भय और सुरक्षित है। अरबी की दार्शनिक दृष्टि बहुत कुछ वेदांतियों से मिलती है और वह अद्वैतवादी प्रतीत होता है । अरबी के अनंतर जिली ने 'इंसानुल कामिल' नामक निबंध में बहुत कुछ इमाम गज्जाली का पक्ष लिया और मुहम्मद साहब को ईश्वर तक सिद्ध कर दिया । यहाँ ईश्वर से तात्पर्य वेदांतियों के उपाधिधारी ब्रह्म से है, भक्तों के भगवान् से नहीं उक्त ग्रंथों के अतिरिक्त कुशेरी का 'रिसाला' और सुहरावर्दी का 'अवारिफुलम्वारिफ' नामक निबंध सूफियों के प्रसिद्ध पथप्रदर्शक ग्रंथ हैं। उनसे सूफियों की अनेक बातों का पता चलता है । महमूद शबिस्तरी की पुस्तक 'गुलाने राज फ़ारसी की एक प्रसिद्ध पुस्तक है जिसे गुह्य विद्या के प्रेमी खूब पढ़ते हैं। प्रश्नोत्तर के रूप में उसमें तसव्वुफ का 'राज' (भेद) खोला गया है । इराकी' की पुस्तक 'लमात' चंपू है । उसमें गद्य और पद्य दोनों के द्वारा प्रेम-पथ का अच्छा निदर्शन किया गया है। इनके अतिरिक्त और बहुत से निबंध तसन्युफ पर लिखे गए परंतु उनको सूफी- साहित्य में कुछ विशेष महत्व नहीं मिला। उनके विषय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। सूफी-साहित्य के द्वितीय अंग से हमारा तात्पर्य उन निबंधों तथा ग्रंथों से है जिनमें सूफियों का जीवन-वृत्त या परिचय दिया गया है। अरबी तथा फारसी दोनों ही भाषाओं में इस विषय की बहुत सी पुस्तकें हैं जिनमें सूफियों का विवरण एवं उनकी करामत का प्रदर्शन किया गया है । देखने से पता चलता है कि सूफी-साहित्य का यह अंग भी है; हमारे यहाँ की तरह उपेक्षित नहीं । 'अत्तार' की पुस्तक 'तजकिरातुल औलिया' को कौन नहीं जानता ? उसमें प्रारंभ के सूफियों का तो विवरण है ही, उससे सूफीमत के इतिहास पर भी पूरा प्रकाश पड़ता है। दौलत