पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 तसब्बुफ अथवा सूफीमत शाह ने कवियों का जो परिचय दिया है उसमें भी अनेक सूफियों का हाल है। उसकी 'तजकिरातुल शुभरा' नामक पुस्तक से सूफियों के विषय में बहुत कुछ जाना जाता है। 'जामी' इस क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं रहा। उसकी किताब 'नफहातुल- उंस' में सूफी संतों के जीवनवृत्तों का अच्छा संकलन है । इनके अतिरिक्त भी बहुत से छोटे मोटे ग्रंथ हैं। सूफियों के संबंध में तो पिछले लोग नित्य ही कुछ कहते रहते थे। उनके लेखों का विवरण कहाँ तक दिया जा सकता है। प्रस्तुत प्रसंग के लिए इतना ही पर्याप्त है। सूफी-साहित्य का तृतीय अंग काव्य है। काव्यानंद ही तसव्वुफ का प्राण है अाज हम जो सूफियों का नाम लेते हैं, उसका सर्वप्रधान कारण यह है कि हमें उनके काव्य का कुछ रस मिल गया है । यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो सूफी- साहित्य के अन्य अंग इसी पर अवलंबित हैं और इसी की पूर्ति के लिये रचे गए। हैं । सूफियों ने काव्य के भीतर जिस सत्य का आभास दिया तथा कविता में जिस तथ्य का निर्देशन किया वह इसलामी साहित्य में अन्यत्र दुर्लभ है। सूफियों की जो कुछ प्रतिष्ठा या ख्याति है वह उनके काव्य और प्रेम पर ही निर्भर है। उनके ताविक विवेचन को कितने लोग जानते हैं ? उनके दर्शन को कितने लोग मिथ्या पाखंड नहीं समझते ? उनको कितने लोग जिंदीक नहीं मानते ? परंतु फिर भी लोग सूफियों का सत्कार क्यों करते हैं ? उनकी प्रशंसा में क्यो लगते हैं ? यहीभ कि उनके काव्य अथवा प्रेम-प्रलाप में जो अानंद पाता है वह अन्यत्र नहीं मिलता और होता भी है अनिर्वचनीय अथवा ब्रह्मानद सहोदर ही ? सचमुच सूफियों के प्रेम प्रवाह में वह शक्ति है जो उनके काव्य को अमृत बना देता है और लोग उसके श्रास्वादन में अपने को भूल जाते हैं । सूफी काव्य के परिशीलन से पता चलता है कि सच्चे सूफियों का ध्येय काव्य करना न था। काव्य के प्रावरण में उन्हें जिस सत्य का प्रकाशन करना था तथा जिस तथ्य का निरूपण जिस प्रेम का प्रदर्शन करना था उसका आभास हमें उनके अध्यात्म के प्रकरण में मिल चुका है, और हमने यह भी देख लिया है कि प्रतीकों के आधार पर किस प्रकार लौकिक के रूप में अलौकिक का बोध कराया