पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साहित्य एक ऐसा कवि है जो अपने क्षेत्र में अद्वितीय और सारे मुसलिम साहित्य में निराला है । उसमें तसव्वुफ का नाम नहीं। शेष तीन कवियों में रूमी और हाफिज पक्के सूफी हैं। हाफिज में फारस की प्राचीन संस्कृति का प्रेम भरा है और वे ढोंगी सूफियों को कोसते भी खूब हैं। सादी में यद्यपि तसव्वुफ की मात्रा कम नहीं है तथापि उनका ध्यान सदाचार पर ही अधिक टिका है। फिरदौसी और किसी अंश तक सादी को छोड़ कर फारसी के शेष जितने अच्छे कवि हुए हैं सभी सूफी हैं और प्रेम-पीर का प्रचार करते हैं। सूफी कवियों के प्रसंग में उमर खय्याम को छोड़ जाना शायद आजकल अप- राध ही समझा जायगा । फारसी साहित्य में तो खय्याम गणित और ज्योतिष के लिये ही प्रसिद्ध था, सूफी कविता के लिये इतना कदापि नहीं । परंतु उसकी स्वच्छं- दता पश्चिम को इतनी प्रिय लगी कि उसके सामने फारसी के सारे कवि फीके पड़ गए अाज रूमी ओर हाफिज को लोग भूल से गए, पर खय्याम की सज-धज सर्वत्र जारी है । श्री मैथिमीशरण गुप्त जैसा वैष्णव कवि उसके अनुवाद में लीन है और उसके पद्यानुवाद को सुरा के साथ शान से प्रकाशित कराता है। मतलब यह है कि खय्याम की कविता समय के अनुकूल है। उसके प्रशंसकों को इस बात की चिंता नहीं कि उसकी रूबाइयों में कुछ किसी अन्य का भी योग है अथवा नहीं। सईद और खय्याम इस ढंग के व्यक्ति हैं जो परंपरा का अादर नहीं करते और जो रस्मपरस्ती से चिढ़ते तथा सर्वथा स्वच्छंद रहते हैं। खय्याम के विषय में तो बहुत की धारणा है कि वह सुरति और सुरा का सचमुच भक्त था और किसी व्यक्त 'साकी' से ही अपना दुखड़ा रोता था और 'अंगूर की बेटी' में ही उसे सब कुछ दिखाई देता था। कुछ भी हो, खय्याम अानंद के लिये कविता करता था और मौज में आकर ही शेख, मुल्ला और काजी की खूब खबर लेता था। उसका उदय भी फारसी के अादि काल मे हुआ था जो मुल्लाओं के प्रकोप का काल था। उमर खय्याम से आते आते हाफिज तक सूफी काव्य इतना व्यापक और पूर्ण हो गया कि उसके किसी भी अंग की पूर्ति की आवश्यकता न रह गई। हाफिज के अनंतर जितने कवि हुए हैं सभी सच्चे सूफी नहीं है, किंतु कविता सबकी सूफी रंग