पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत में डूबी हुई है। उनके भावों, विचारों और प्रतीकों में कुछ नवीनता नहीं दिखाई पड़ती। जान पड़ता है कि उनको कही हुई बातों के कहने में ही रस मिलता है । फारसी में कविता करे और सुरत्ति तथा मुरा का गुणगान न करे यह असंभव है। अनुकृति के कारण सूफी कवियों में भी कृत्रिमता आने लगी और काव्य धारा का सहज प्रवाह रुक सा भया । उसकी स्वच्छता जाती रही। उसमें बनावट की बू पाने लगी। हाफिज के बाद जामी ही सफल कवि निकला। उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी। उसमें फिरदौसी, सादी, रूमी और हाफिज अादि सभी के कुछ न कुछ गुण मौजूद थे। उसकी मसनवी, 'युसूफ व जुलेना' का फारसी साहित्य में बराबर लत्कार होता रहा है। उसकी अन्य रचनाएँ भी कम नहीं हैं। उनसे तसब्बुफ के अध्ययन में मदद मिलती है। भार । में जो यूपी काव्य धारा उमड़ी उसके संबंध में स्वतंत्र रूप से विचार करने का संकल्प है। अतः यहाँ केवल इतना ही कह देना पर्याप्त है कि भारत में भी अमीर खुसरो सा फारमी का प्रसिद्ध सूफी कवि हुआ जिसकी कविता की धाक ईरान में भी जम गई और न जाने कितने ईरानी उसके शिष्य हो गए । और मुगल शासन मे नी भारत फारसी कवियो का अड्डा ही हो गया । अाज भी फारसी कवियों- की मुधि दिलाने के लिये जहाँ तहाँ हिन्दी कवि फारसी में रचना कर रहे हैं। और स्व० डाक्टर सर मुहम्मद इकबाल' तो उसीके हो कर मरे हैं। उनका लेखा कोन ले ? इन सूफी कवियों में कतिपय ऐसे भी हुए जिन्होंने अन्य विषयों पर भी रचना की । पर सूफीमत के प्रसंग में इन पर विचार करने की आवश्यकता नहीं । अस्तु, यहाँ हमको अब यह देख लेना चाहिए कि सूफी-काव्य की प्रगति किस ओर अधिक रही और विश्व-साहित्य मे उसका क्या महत्व है। सो इतना तो प्रकट ही है।कं सूफी साहित्य का क्षेत्र अत्यंत ही संकुचित है। सूफी कवियों ने जैसे शपथ सी ले ली है कि सुरति और सुरा से ये स्वप्न में भी एक पग भी आगे न बढ़ेंगे और यदि कभी अवसर भी मिला तो वस चमन से कब तक दौड़ लगा लेंगे। पर इससे आगे और कुछ भी न करेंगे। सूफी शाइरी में से यदि साकी और बुलबुल को निकाल दिया जाय, इश्क और शराब का नाम लेना बन्द कर दिया जाय, चमन और कब से परहेज किया जाय तो सूफी-काव्य का उसी क्षण अंत हो जाय । संसार में रहते