पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१९५

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत प्रेम का मर्म समझते थे और उनके प्रसाद ( तबर्रक) से शैतान को मार भगातें थे। परंतु जनता के सामने फिर भी एक उलझन बनी ही रहतो थी। वह सूफियों के 'इश्क हकीकी' को समझ नहीं पाती थी। वह किसी प्रकार उनके 'हकीक़ी माशूक' को अपने 'मजाज़ी माशूक' से अलग नहीं कर सकती थी। परिणाम यह होता था कि इस 'इश्क' की पुकार से लोग अमरदपरस्ती में लग जाते थे और राष्ट्र का बलवीर्य नष्ट हो जाता था । उधर भक्तों के भगवान् और शाओं के इमाम में प्रेम का यह घपला नहीं था। उनमें संयम था, संस्कार था और था हृदय के लगाव का पूरा प्रबन्ध । फलतः हसनहुसैन के अतिरंजित वृत्तों में जनता का मन अच्छी तरह रम गया और ईरान में 'ताजिया' की धूम मची। लोग उसके सामने तसव्वुफ को भूल गए । हृदय को प्रत्यक्ष हृदय मिल गया और जनता उसके अभिनय में लीन हुई, और इसीसे अपनी मुराद भी पूरी करने लगी। फकीह तसव्वुफ के कट्टर विरोधी थे ही। उनको और भी अच्छा अवसर हाथ लगा। मुजतहिदों की शनिदृष्टि सूफियों पर पड़ी तो उनका ईरान से निर्वासन हो गया । ईरान सदा के लिये शीअामत का पक्षपाती हो गया और उसमें सूफियों के फलने-फूलने की जगह न रही। तसव्वुफ के इतिहास की यह करुण कथा है कि उसके विनाश का मूलकारण उसीका सहोदर शीनामत हुआ ! शीअामत की प्रतिमा सफवीवंश के शासन में हुई । सफवीवंश वास्तव में सूफी-वंश था। फिर भी उसके शासन में सूफियों का ह्रास हुआ। न जाने कितने सूफियों का काल प्रसिद्ध मुजतहिद मुल्ला 'मुहम्मद बाक़िर' मजलिसी बना । उसके अनुमोदन या श्राग्रह से सूफियों का तिरस्कार, निर्वासन और बध आदि सभी कुछ हुआ। उसके अत्याचारों की सीमा न रही। उसके कारण तसव्वुफ ईरान से बिदा हो गया तो भारत में उसे शरण मिली। बाकिर मजलिसी भी सूफी संतान था। उसका पिता सूफियों के प्रति उदार था । अपने पक्ष की पुष्टि तथा जनता पर धाक जमाने के लिये उसे स्वयं कहना पड़ा- (१) पहिस्टरी आव पर्शियन लिटरेचर इन माडर्न टाइम्ज, पृ० २०.१ ।