पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१९६

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"मेरे पिता के संबंध में कोई ऐसी धारणा न करे कि वह सूफी थे। नहीं । मैं बराबर उनसे समाज तथा एकांत में हिला मिला रहता था और उनके विचारों से भलीअँति परिचित हो गया था। वास्तव में मेरे पिता सूफियों का सदैव अहित चाहते थे और इसीलिये उनके संध में शामिल भी हुए थे कि उनके बीच में रहकर उनका विध्वंस करें। उस समय सूफी शक्तिशाली थे। अतः पूज्य पिताजी को प्रच्छन्नता से काम लेना पड़ा।" अब तो इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि तसव्वुफ का विनाश उसी के देश में उसी की संतानों ने कर दिया और देखते ही देखते वह ईरान से बोल गया । 'सूफीकुश' वाकिर तथा अन्य मुजतहिदों के फतवे व्यर्थ नहीं गए। उनके प्रकोप से तसव्वुफ नष्ट हो गया, काव्य अपने लक्ष्य से गिर गया, विद्या-प्रेम जाता रहा, विधि-विधानों की प्रतिष्ठा हुई, और सर्वत्र शीअामत छा गया। ईरान का राजधर्म शीश्रा हो गया और उसके विधाता मुजतहिद बने । परिणाम यह हुआ के ईरान से सूफियों के निशान मिटे। मिर्जा मुहम्मद खां ने इस संबंध में स्पष्ट कहा है कि सफवी शासन से अध्ययन, अनुशीलन, काव्य और साहित्य का सिका उठ गया । मठों, खानकाहों आदि सूफी संस्थानों की दशा यह हो गई कि अब बतूता के वर्णन में सहसा विश्वास नहीं होता कि किसी समय ईरान उनसे पटा पड़ा था। ईरान की इस प्रगति से अनभिज्ञ व्यक्ति उसकी इस परिस्थिति को देखकर चकित हो सकता है। उसके मन में प्रश्न उठ सकते हैं कि क्या यह वही ईरान है जिसमें कभी सूफियों की तूती बोलती थी, प्रेम के गीत गाए जाते थे, राग की तान छेड़ती थी और इश्क का बोलबाला था । आज तो ईरान में किसी भी सूफी स्था का पता नहीं और कहीं किसी भी खानकाह का संचालन नहीं । ईरान से तसव्वुफ के उठ जाने का प्रधान कारण उसकी राष्ट्रभावना है । शीअा. मत भी वास्तव में इसी राष्ट्रभावना का परिणाम है। किसी भी देश की कहर राष्ट्र- (१) पहिस्टरी आव पर्शियन लिटरेचर इन माडर्न टाइम्त पृ० ३८३ । पृ०२६-८. " "