पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०२

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हास निकाल फेंका जाय और उसे स्वच्छ और निखरे रूप में जनता के सामने रखा जाय । उस समय इसलाम में विद्या का व्यापक व्यसन और तसव्वुफ का सच्चा समादर था, अतः उक्त महानुभाव को सफलता न मिली। किंतु उनका प्रयास सर्वथा निष्फल न गया। समय आने पर फिर उसमें बहार आई। आगे चल कर जब तस- ब्बुफ. का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत हो गया और नाना प्रकार की बाहरी बातें उसमें घुस पही यहाँ तक कि उनको तसव्वुफ का अंग समझ लिया गया और सूफी सिद्धांतों से दूर रह उनकी ऊपरी बातों के अनुकरण में गर्व करने लगे तथा इसलाम में चारों ओर पीरों की उपासना, मजारों की जियारत, दरगाहों की यात्रा आदि छा गई तब सच्चे मुसलिम इसलाम के मूल स्वरूप को चैतने लगे और फलतः वहाबियों का उदय हुअा। श्री वहाब शुद्ध इसलाम का कट्टर पक्षपाती था। उसको इसलाम का वही स्वरूप भाता था जिसको रसूल ने जीवनदान दिया था और जो इब्राहीम का पुराना मत कहा जाता था। अब्दुल वहाब सूफियों से जलता था। शीआमत का वह घोर विरोधी ही नहीं कट्टर शत्रु भी था । उसके आंदोलन की प्रथम सफलता सं० १८५८ में उस समय लक्षित हुई जब उस के अनुयायियों ने बगदाद के निकट इमाम हुसैन नामक ग्राम को लूट लिया और इमाम की प्रसिद्ध समाधि को भ्रष्ट कर दिया । उनका साहस इतना बढ़ा कि देखते ही देखते उनका वज्रपात काबा और स्वयं मुहम्मद साहब की कब्र पर भी हो गया । अभी उस दिन फिर काबा पर उनका प्रकोप हुआ था और उसकी गत भी खूब बनी थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आज अरब में उन्हीं वहाबियों की प्रभुता है जो तसव्वुफ के शनि और सूफियों के शत्रु ठहरे। अतएव अरब में भी तसव्वुफ का श्रादर नहीं हो सकता । विनाश के साधन वहाँ भी प्रस्तुत हैं । अाज सऊदी शासन 'शरा' का पक्का पुजरी है । महासमर की लहर से मुसलिम सचेत हो गए हैं। उनके जो प्रांत फिरंगियों के अधिकार में आ गए हैं उन में धीरे धीरे विदेशियों के साथ ही विदेशी विचार भी धर करते जा रहे हैं । सीरिया, इराक आदि मुसलिम प्रांतों की परिस्थिति बहुत कुछ एक सी है। उनमें न तो तुर्को का प्रगल्भ जागरण है और न अफगानों का प्रखर रोष ही। अभी उनमें विप्लव विशेष की आशंका भी नहीं है। उनमें जो