पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत को सदा से अपना आदिम निवास और दक्षिण या सरन द्वीप को बाबा आदम का शरण्य मानते पा रहे हैं। भारत से विख्यात बुतपरस्त देश पर हजरत उमर सा कहर खलीफा का अक्रमण न करना और अपने अनुयायियों को भी अाक्रमण करने से रोक देना, इतिहास की एक विलक्षण घटना है। यही नहीं, आगे चलकर अरबों का हिंदुओं को 'अले किताब' के समान मान लेना मुसलिम संसार की एक अद्भुत पहेली हैं। इस प्रकार की मजहबी गुत्थी को छोड़ हमें यह स्पष्ट कहना है कि भारत में तसव्वुफ को वह भाव-भूमि मिली जो अन्यत्र दुर्लभ थी। सिंध में अरबों का शासन जमा नहीं कि मुल्तान तसव्वुफ का अड्डा बन गया और सूफी उसके प्रचार में जुट गए । कुछ दिनों के बाद अरव तो ठंडे पड़ गए, पर तुर्कों और पठानों के लगातार अाक्रमण हुए और धीरे धीरे भारत में इसलामी राज्य स्थापित हो गए। तुर्कों के पतन और मुगलों के उत्कर्ष से भारत इसलाम का 'दन बन गया । मुसलिम लड़ते और सूफी प्रेम का प्रचार करते रहे। भारत में सूफियों के कई सिलसिले चल पड़े, इनमें विश्ती, मुहरावर्दी, कादिरी, शत्तारी, और नक्शबंदी सिलसिले अधिक प्रसिद्ध हुए। सूफियों में अनेक जिंदीक भी थे जो भारतीय परि- स्थिति में इसलाम से बहुत कुछ स्वतंत्र हो गए। सूफियों ने अरबी और फारसी में जो कुछ लिखा सो तो लिखा ही भारत की ठेठ भाषाओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। हिंदी या 'भाखा' में भी अनेक सूफी कवि हुए। इनमें से कुछ तो इसलाम के पक्के पाबंद रहे और कुछ स्वतंत्र हो गए । इसलामी सूफियों में मंझन, कुनबन, जायसी, उसमान, नूरमुहम्मद आदि अच्छे कवि हुए जिन्होने अवधी में मसनवियाँ लिखीं। गैर इसलामी अथवा 'अाजाद' सूफियों में कबीर, दादू, यारी, दरिया आदि मौजी कवि हुए जिन्होंने 'सधुक्कड़ी' भाषा में कुछ बानियां कहीं। हिंदी में इनको संत की उपाधि मिली । इन संतों में कुछ इसलाम का उचित ध्यान रखते थे और कुछ इसकी बहुत सी बातों को पापंड मात्र समझते थे। सूफियों के प्रयत्न से हिंदू-मुसलिम एक से हो रहे थे। मजहबी कट्टरता भी बहुत कुछ नष्ट हो चली थी कि इसी बीच में मुगलों का पतन और फिरंगियों का पदार्पण हुआ। धीरे धीरे अंगरेज भारत के विधाता बन गए । फिर तो हिंदू-मुसलिम, उर्दू-हिंदी आदि का द्वन्द्व उठा और हिंदी मुसल-