पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०८

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हास १९१ 1 मान फिर बड़ी तत्परता से बाहर झांकने लगे। भारत के मुसलमान संघटन. म सदा से तत्पर थे, पर उनकी दृष्टि इतनी पैनी न थी कि वे बँधकर किसी इसलामी साम्राज्य का प्रयत्न करते। हाँ, जब मुसलिम प्रदेशों में पैन इसलाम' किंवा मुसलिम एका का अांदोलन चला तब भारत के मुसलामन भी उसमें जुट गए । महासमर के भीतर उसका लग्गा टूट गया पर तो भी भारत के मुसलमान उसी लग्गी से उसको पानी पित्ता रहे हैं और फलतः इस समय उसकी सबसे अधिक चिंता भी इन्हीं को है। मौलाना मुहम्मद अली का यरूशलेम में दफनाया जाना और मौलाना शौकत अली का यरूशलेम में मुसलिम विश्वविद्यालय की योजना करना इसी के पक्के प्रमाण हैं देखा ? भारत के मुसलमान किस ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं ? इसमें संदेह नहीं कि तुर्को के सुधारों ने इन्हें हताश कर दिया है, किंतु तो भी इन्हें तुर्की टोपी का अभिमान है और अब भी किसी 'खलीफा' की ताक में हैं। सचमुच भारत का सच्चा मुसलमान वही हो सकता है जो अरबी का प्रालिम, फारसी का फाजिल, दिमाग का तुर्क और जुबान का उर्दू हो और उसके रंग-ढंग वेश-भूषा में अरब, इरान, तूरान और हिंद का मेल हो । और यदि कुछ न हो तो केवल हिंदीपन । कमालपाशा ने खिलाफत को जो धक्का दिया उससे भारत के मुसलमान दहल गए । अब खिलाफत का प्रधान काम हो गया अधिकारों की याचना करना। मुसलिम लीग तथा अन्य इमलामी संस्थाएँ भी मुसलिम अधिकारों की चिंता में लगी हैं। कुछ मुसलमान ऐसे भी हैं जिन्हें जन्मभूमि की प्रतिष्ठा और राष्ट्र की मर्यादा का दूरा ध्यान है और जो सीमांत गांधी और मौलाना 'आजाद' के साथ स्वराज्य-संपादन में हिंदुओं के साथ हैं और हिंदु-मुसलिम-एकता पर पूरा जोर देते हैं, परंतु प्रतिदिन उनकी संख्या क्षीण होती जा रही है और उनमें मजहबी पक्षपात आता जा रहा है। बात यहाँ तक बढ़ गई है कि आज इसलाम का प्रचार नहीं, देश का बँटवारा हो रहा है। मजहब के नाम और दीन की गोहार पर चाहे जो हो जाय पर इसलाम की वर्तमान प्रगति से बहुतों को संतोष नहीं है। श्री खुदाबख्श और डाक्टर इकबाल ने तुर्कों का पञ्च लिया था और 'इजतिहाद' का इसलाम मात्र में प्रचार चाहा था इधर प्रहमदिया दल के मुसलमान इसलाम को नया रूप दे रहे हैं और कुरान की