पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१२

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भविष्य १९५ तांडव फिर लास्ट में परिणत हो गया और धीरे धीरे फिर तांडव के रूप में विश्व में व्याप गया। कहना न होगा कि इस लास्य का भी परिणाम प्रकारांतर से संहार ही ही हो गया। सुख, संतोष, शांति श्रादि सद्गुणों का प्रसार तन तक ठीक से नहीं हो सकता जब तक हम पश्चिम के इस लास्य एवं छल-छंद में विश्वप्रेम की झांकी देखने हैं। इनके लिए तो देश-प्रेम और जाति-भाव की संकीर्ण सीमा को पार कर सूफियों के साधु प्रेम को अपनाना चाहिए और उसी के आधार पर सरस, सामान्य, और मानव भाव-भूमि पर विद्यार करना चाहिए । इतिहास इस बात का साक्षी है कि सूफी सदा से सच्चं प्रम के आधार पर फटे हृदयो को एक करते आ रहे हैं । भविष्य में इन्हीं के सच्च विश्व-प्रेम से विश्व के मंगल को अशा की जा सकती है। पश्चिम का विश्व प्रेम तो विप्लव का विधायक और लाभ का प्रचारक है। उसमें आनंद कहाँ ? सच्चे सूफियों ने समय की गति देख ली है । कतिपय सुख-शांति के विधान में लग भी गए हैं। वास्तव में किसी भी मन के साधु-संत देश-काल के बंधन से सदा मुक्त होने हैं। उनमें विषमता की अपेक्षा समता अधिक होती है। अतएव उनके आधार पर मतों की एकता प्रासानी से समझ में आ जाती है और लोग पारस्परिक विरोध को छोड़ बहुत कुछ एक हो भी जाते हैं। आज सभी देशों और मतों में जीवन लहलहा रहा है। उनके सच्चे सपूत सवरन और समन्वय में लगे हैं। नाना प्रकार के समाज तरह तरह की बातों के लिए स्थापित हो रहे हैं। सूफियों के भी आंदोलन चल पड़े हैं। गत प्रकरण में हमने देख लिया कि मुसलिम देशों में तसन्युफ का प्रचार रोक सा दिया गया है और फलतः कहीं कहीं वह रुक भी गया है। और जहाँ कहीं आज उसका प्रचार हो रहा है वहाँ या तो राष्ट्रभावना का अभाव है या जातीयता की कमी । इसी से यह कहा जाता है कि तसव्वुफ किसी वर्ग विशेष का मत नहीं, बल्कि मानव हृदय का प्रवाह है। उसे किसी मार्ग विशेष पर ले चलना या किसी मजहब में घेर देना कठिन ही नहीं भयावह भी हैं। जब कभी वह सीमित हुआ तब उसमें फसाद की बू आई और संसार दहल उठा । अतएव यह निश्चित है कि राजनीति के चक्कर में तसव्वुफ का सर्वनाश नहीं हो सकता। उसका आविर्भाव किसी न किसी रूप में बराबर होता ही रहेगा। विद्या