पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१३

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१९६ तसत्वुफ अथवा सूफीमत और विज्ञान के प्रचार से उसकी बाहरी बातों में जो परिवर्तन होंगे उनसे हमें क्या लेना ! हमें तो केवल यह देखना है कि उसके वास्तविक स्वरूप में कालचक्र के प्रभाव से क्या परिवर्तन हो जायेंगे। यह तो हम देख ही चुके हैं कि तसव्वुफ में प्रचारक बराबर होते रहे हैं। सूफियों का कहना है कि प्रचार के लिए संघ का स्थापित होना आवश्यक है। संघ के संबंध में भूलना न होगा कि जहाँ उसकी संस्थापना से किसी मत के प्रचार में सहायता मिलती है वहीं उससे रूटियों की मर्यादा भी बंध जाती है और कुछ ही समय में संघ अपने संस्थापक के लक्ष्य से गिर न जाने किस काम में किधर नँध जाता है। उसकी बातों से ऊब कर जो नए संघ सत्य-प्रकाशन के लिए स्थापित किये जाते हैं कुछ दिनों में उनकी भी वही गति होती है। इस प्रकार न जाने कितने संघ एक ही मत के अंग होने पर भी अलग अलग हो जाते है और कभी कभी उनमें तू-तू और मैं मैं भी हो जाती है । संघ की इस त्रुटि को देखने हुए भी श्री इनायत खाँ ने पश्चिम में एक सूफी संघ स्थापित कर दिया है, जिसका मुख्य काम है तसव्वुफ का प्रचार करना और लोगों को यदि चाहें तो, मुरीद भी बना लेना । स्वामी विवेकानंद ने अपने विवेक और त्याग के बल पर पश्चिम, विशेषतः अमरीका में जो ख्याति पाई और जिस प्रकार मसीहियों में वेदांत का प्रचार हो गया उसको देख कर एक दूसरे भारतीय सज्जन को प्रोत्साहन मिला। उन्होंने देखा कि जब मसीही वेदांत का इतना आदर करते हैं कि इसके सामने इंजील को भी छोड़ देते हैं तब वे तसव्वुफ को क्यों नहीं ध्यान से सुनेंगे, क्योंकि इसकी श्रास्था भी किताबी और अध्यात्म भी वेदांती है । जब तसव्वुफ में उनको वेदांत की बातें मिल जायेंगी तब वे अवश्य ही उसे छोड़ तसव्वुफ कबूल करेंगे और सूफी संघ में आपही पा जायेंगे। निदान प्राज से तीस बत्तीस वर्ष पहले श्री इनायत खाँ के मानस में जो भाव उठे उनकी पूर्ति के लिये उन्हें पश्चिम जाना पड़ा। अमरीका, फ्रांस, रूस, जर्मनी, इंगलैंड प्रमृति देशों में भ्रमण करने के अनंतर उन्होंने एक संघ स्थापित किया जिसका प्रधान काम तसव्वुफ का प्रचार करना है । श्री इनायत खाँ ने शिक्षा और दीक्षा-तसव्वुफ के दोनों अंगों पर ध्यान दिया। उनके