पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१४

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भविष्य संघ में अनेक स्त्री-पुरुष प्रा मिले और उसके नियम भी बना दिए गए और स्वीट- जरलैंड का प्रसिद्ध नगर जिनेवा उसका केंद्र भी निश्चिय हो गया। उक्त संघ बहुत कुछ थियासिफी (ब्रह्म समाज ) के ढर्रे पर काम कर रहा है। उसकी ओर से बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें अधिकांश स्वयं इनायत खों 'पीर व मुरशिद' की लिखी हुई हैं। इस संघ की ओर से एक सूफी पत्रिका भी निकलती है। किताबों तथा पत्रिका को देखने से पता चलता है कि अभी सूफी. आंदोलन अपना परिचय मात्र दे रहा है और किसी विशेष रूप में सूफी-साहित्य का निर्माण नहीं कर रहा है। उक्त संघ ने प्रचार पर विशेष ध्यान दिया है । प्रत्येक देश में उसके प्रतिनिधि हैं, जो प्रचार का काम करते और अपने 'मुरशिद' को अनु- मति से मुरीद भी बना लेते हैं। संघ का संचालन स्वयं खां महोदय करते थे और श्राप ही उसके 'पीर व मुरशिद' भी थे। दीक्षित व्यक्तियों में से कुछ उक्त संस्था के 'अतरंग' सदस्य होते हैं और उन्हीं के हाथ में उसका प्रबंध भी रहता है । जो लोग दीक्षित नहीं होते उनको तसव्वुफ की शिक्षा भर दो जाती है और वे उसके 'बहिरंग' या पोषक भर समझे जाते हैं । मुरीद जिक्र और फिक की पद्धति विशेष पर खूब ध्यान देते हैं और उन्हीं की कसरत में निमग्न रहते हैं । इस प्रकार पश्चिम में सूफी- मन का प्रचार व्याख्यानों और पुस्तकों के द्वारा हो रहा है। इस सूफी आंदोलन का दावा है कि हमारा ध्येय प्रेम का प्रचार करना है, कुछ किसी से मतपरिवर्तन के लिये श्राग्रह करना नहीं। उक्त सूफी आंदोलन में विचारणीय बात यह है कि उसमें पीरी-मुरीदी का भाव वैसा ही बना है। प्रतीत होता है कि किसी भी गुह्य-विद्या की प्राप्ति के लिये किसी सगुरु का होना अनिवार्य है। फलतः, विज्ञान के प्रचार के कारण पीरपरस्ती को धक्का लगा है,किंतु वह उसे उखाड़ फेंकने में असमर्थ सिद्ध हुआ है। कारण, विज्ञान के आधार पर एक ओर जहाँ नास्तिकता का प्रचार और प्रत्यक्ष का स्वागत हो रहा है वहीं दूसरी और उसी के प्रमाण पर ईश्वर का प्रतिपादन और गुह्यता का निरूपण भी किया जा रहा है। विज्ञान को लेकर जो समाज आगे बढ़े हैं उनमें से अनेक गुन्य-विद्या के उपार्जन में कटिबद्ध हैं । उनके इतिहास और मानव वृत्तियों की स्वतंत्र छानबीन से