पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१५

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत स्पष्ट अवगत हो जाता है कि मनुष्य परोक्ष वा गुह्य को त्याग नहीं सकता ; उसकी अोर अवश्य आँख बिछाए रहता है। उसकी बुद्धि चाहे जितनी विकसित हो, उसका मस्तिष्क चाहे जितना संस्कृत हो, उसकी प्रतिभा चाहे जितनी तत्पर और मेधा चाहे जितनी तीव्र हो, वह किसी भी दशा में प्रत्यक्ष अथवा कोरे विज्ञान से संतुष्ट नहीं हो सकता। वह प्रत्यक्ष में रहता और परोक्ष का स्वप्न देखता है। उसी के लिये चिंता भी करता है। विज्ञान के चरम निष्कर्ष भी प्रायः स्वतः इतने अस्थिर और संदिग्ध होते हैं कि उन्हें दूसरे कोनेवाले विज्ञानी ही नहीं मानते, फिर उनके आधार पर कोई शाश्वत और निर्धात सिद्धांत कैरो खड़ा किया जा सकता है। सूफियों के पक्ष में एक विशेष बात यह भी है कि स्वयं विज्ञान के अध्ययन में किसी जानकार विज्ञानी की आवश्य- कता होती है । तो जब स्थूल द्रव्यों के विश्लेषण में किसी गुरु की सहायता अनिवार्य है तब सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्व के अनुसंधान में किसी जानकार की उपेक्षा किस प्रकार संभव हो सकती है । अतः हम देखते हैं कि तसव्वुफ में गुरु की महिमा अाज भी अक्षुण्ण है और सूफी आंदोलन में पीरी-मुरीदी धूम से चल रही है। कोई कारण नहीं कि भविष्य में अहंकारी जीव भी अपनी कमी से अभिज्ञ होने पर किसी की मुरीदी न करे। वास्तव में मुरीदी का मतलब है अहंकार का नाश और प्रणिधान का उपार्जन । जब किसी को किसी तथ्य के जानने की जिज्ञासा होगी तब उसे किसी जानकार के पास जाना ही होगा। अहंभाव तो तभी तक बना रह सकता है जब तक हम में अज्ञान भरा है । जब कभी हमें यह पता चला कि वस्तुतः हम किसी कर्म के कर्ता नहीं हैं ; क्योंकि उस कर्म का पूरा होना, साधन होते हुए भी अपने हाथ में नहीं है, तब हमें अपने 'अह' को छोड़कर किसी 'पर' की शरण लेनी ही पड़ेगी। उसकी कृपा से जहाँ हमें अपनी त्रुटि और सच्चे स्वरूप का बोध हो गया वहीं हम आरिफ बन गए और हमारी मुरीदी जाती रही । अस्तु, हम निःसंकोच भाव से कह सकते हैं कि विज्ञान का चाहे जितना प्रचार हो और हम अपने आप को चाहे जितना महत्व दें, पर हममें से पीरी-मुरीदी का सर्वथा लोप नहीं हो सकता है वह किसी न किसी रूप में हममें प्रतिष्ठित ही रहेगी और हम किसी जानकार की सेवा करते ही रहेंगे। परंतु इतना अवश्य होगा कि विद्या