पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२३

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तसम्वुफ अथवा सूफीमत वही परिणाम होगा जो विश्व के किसी भी पदार्थ अथवा चित्तवृत्ति की चिता में होता है । किसी भी प्रत्यक्ष वस्तु को सत्ता पर विचार कीजिए, आपको उसमें किसी परोक्ष सत्ता का संकेत अवश्य मिलेगा। इसी परोक्ष सत्ता को सूफी अपना वास्तविक प्रालंबन बनाते हैं। तो भी सूफियों के प्रेमप्रदर्शन में भी कुछ परिवर्तन अवश्य होंगे। उद्भव के प्रकरण में हम बता ही चुके हैं कि अंतरायों के कारण सहज रति ने परम रति का रूप किस प्रकार धारण किया । भई! बात यह है कि मनुष्य अपने भावों को छिपाने अथवा उन्हें अलौकिक रूप देने में जितना दक्ष है उतना कोई भी अन्य प्राणी नहीं । और अपनी इसी दक्षता के बल पर तो उसने अपने को अन्य प्राणियों से दिव्य बना लिया है और दावा करता है कि उसका प्रेम काम-वासना से सर्वथा मुक्त है ? पर करे क्या ? उधर उसी के मनोविज्ञान के पंडितों का कहना है कि उसका अलौकिक और दिव्य प्रेम भी वास्तव में काम-वासना का ही परिमार्जित रूप है । जब किसी किशोर के हृदय में मनोभव की प्रेरणा होती है तब वह किसी रति की कल्पना करता है। मनुष्य ने अपने बुद्धिबल अथवा आसमानी आदेशों के आधार पर जो विधि-विधान बना लिए हैं उनके फलस्वरूप उसके संस्कार भी सामान्य प्राणियों से भिन्न, संस्कृत और प्रांजल बन गए हैं। इन्हीं संस्कारों की प्रेरणासे वह अपनी लौकिक वासना को अलौकिक रूप में देखना चाहता है। प्रवृत्ति प्रधान व्यक्तियों अथवा संसार को सुखमय समझनेवाले प्राणियों में सहज रनि के प्रति कोई घृणा या जुगुप्सा का भाव नहीं होता। वे आनंद के साथ अपनी गृहस्थी चलाते हैं। पर (१) माइस एंड दी रेलिजस लाइफ, पृ० १३५ । ( 2 ) He (young Lover) does not approach her, but wan- Jers off to the sea side and gazes at the horizon.."Her lieauty, her goodness, all her perfections are to him but proofs of God's unending love; anil even her physical beauty leads not to desire but to a sacred joy in the glory, God has revealed us to the world.” ( Scienee And the Religious Life, P. 128-9)