पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२६

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भविष्य २०९ अब उपर्युक्त वार्ता के आधार पर निर्द्वन्द्व कहा जा सकता है कि सूफियों के प्रेम के लिये जिन बातों का होना आवश्यक है उनकी कमी आज क्या, कभी भी नहीं हो सकती। न जाने कितने दिनों से मनुष्य जिस परीक्षा सत्ता से संबंध स्थापित किए आ रहा है, जिसके प्रत्यक्षीकरण में मग्न है और जिसके संयोग के लिये. नाना उपचार करने में व्यस्त है, उसकी उसी भक्ति-भावना के प्रवल पावेग के कारण जहाँ परोक्ष को प्रत्यक्ष, निर्गुण को सगुण एवं निराकार को साकार बनना पड़ता है वहीं उसके मजहबी मनसूबा तथा बाहरी दबाव वा चिंता के कारण प्रत्यक्ष को परोक्ष और मूर्त को अमूर्त भी बनना पड़ता है। जो लोग आजकल की प्रेम-कविता को ध्यान से पढ़ते हैं और यह अच्छी तरह जानते भी हैं कि कामवासना ही परिमार्जित होकर परम प्रेम का रूप धारण कर लेती है उनके सामने प्रेमी कवियों का अलौकिक 'आलिंगन', सूफित्रों के चिरपरचित 'वस्ल' अथवा शृंगारी कवियों के स्पष्ट अनुभावों से, सर्वथा भिन्न, कभी भी सिद्ध नहीं हो सकता। हम पहले ही कह चुके हैं कि संसार जिस गति से आगे बढ़ रहा है और जिस रूप में स्त्री पुरुष के सहज संबंध को देख रहा है वह अधिकतर छंदमय और 'उल्लास' प्रिय है। जिस 'उल्लास' की औरणा से प्राचीन नबियों ने सामान्य रति को परम रति का रूप दिया और बाराधना के क्षेत्र में मादनभाव की प्रतिष्ठा की उसी उल्लास के प्राग्रह से आजकल भी अलौकिक प्रेम का गीत गाया जा रहा है और उसी की अोट में किसी दिव्य लोक का संदेश सुनाया जा रहा है। हाँ, इसमें अंतर यह अवश्य पा रहा है कि विज्ञान के प्रभाव के कारण अाज की भाव-व्यंजना पहले से कुछ अधिक संयत, सूक्ष्म और दुरूह होती जा रही है । अस्तु, यह कहा जा सकता है कि भविष्य में भी मादन भाव की मर्यादा बनी रहेगी और लोग लगन के साथ उसका स्वागत करेंगे। पर इतना अवश्य the moral sense is only attempting to throw stones at a glass house in which he is himself living. On the other hand, we find that a true life of Mysticism teaches a fullfedged mora- lity in the individual life and of absolute good to thic society.” (Mysticism in Maharastra P. 27.)