पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२७

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२१० तसव्वुफ अथवा सूफीमत होगा कि भविष्य के प्रेमी कत्रियों का आलंबन और भी धुंधला और अस्पष्ट होगा । सारांश यह कि जब तक मनुः किसी परोक्ष सत्ता में विश्वास करता है और उसे अपने पास नहीं बुला पाता तब तक उसकी खोज लगा रहेगा। इस खोज की प्रेरणा जब किसी प्राणी की प्राप्ति के अभाव में होगी और उससे हमारा गारी संबंध भी स्थापित हो गया होगा तब हमें लाचार होकर सूफी या अलौलिक प्रमा होना होगा। निदान, हमको मानना होगा कि अंतररायी तथा व्यवधानों के कारण, भविष्य में भी, कामवासना परम प्रेम का रूप धारण करती रहेगी और भाजुक मादनभाव के भक्त या सूफी बनले ही रहेंगे। सूफीमत के मुख्य अंगों का अवलोकन हो चुका। देखना केवल यह रहा कि नजम, झाडक और करामत अदि बाहरी वाना का संबंध तमन्नुफ से क्या होगा! इसके संबंध में भूलना न होगा कि वास्तव में इन बातों का संबंध जनता के प्रात हृदय रो है कुछ तसाफ वा सूफियों के मल भाव से नहीं। सनचे सूफा झाडाक नहीं करते ! उनकी दृष्टि में तो दुखदर्द भी प्रियतम की बानगी और प्रसाद ही है । अतः करामत के द्वारा जनता को विस्मय में डाल देना अथवा उसे किसी प्रकार नूह बनाने की अपेक्षा कहीं अच्छा है उसको प्रेम-पीर सिखाना । सूफी इस प्रकार की झूठी शेखी में नहीं पड़ते और न औरों को ही इस मायाजाल में फंसने देने हं, परंतु जब तक जनता दुखदर्द में फसी है और साधु-संतों को पाक्ति में उसे विश्वास भी है तब तक तसव्वुफ में उक्त बातों को स्थान है । यद्यपि अाजकल की गतिविधि को देखने से पता चलता है कि मनुष्य अब अपनी शक्तियों का अभिमान करने लगा है और प्रणिधान से पुरुषार्थ को ही अधिक महत्व दे रहा है तथापि निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में चमत्कार और झाइक से तसव्वुफ का कुछ भी नाता न रहेगा। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अब इनके लिए मानव हृदय उपजाऊ नहीं रहा। अब तो प्रतिदिन इनकी मर्यादा न्यून ही होती जायगी । किंतु प्रेम-पीर की मधुर पुकार से तो जीव कभी बच नहीं सकता, चाहे विज्ञान के द्वारा वह जड़ भले ही बन जाय ।