पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२८

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परिशिष्ट १ तसव्वुक का प्रभाव सूफी देखने में यद्यपि संसार से कुछ विरक्त दिखाई पड़ते हैं तथापि उनक मुख्य उद्देश्य अपने मत का प्रचार करना होता है । हमने पहले ही देख लिया है कि प्राचीन नाबयों में कुछ ऐसे भी जीव होते थे जो सामाजिक अांदोलनों में ही नहीं, अपितु राजनीतिक हलचलों में भी पूरा योग देते थे। श्रा मैक्डानल्डं ने ठीक ही कहा है कि इसलाम के प्रचार के लिये नीतिज्ञ दरवेश प्रांतीय प्रदेशों में जाते और अपनी उदारता तथा प्रेम के उपदेशां से कतिपय व्यक्तियों को मूंड लेते थे। धोरे धीरे जब उनकी संख्या पर्याप्त हो जाती थी और उनको अपनी शक्ति में विश्वास हो जाता था तब उनका वहीं एक उपनिवेश बन जाता था, जो समय पाकर किसी मुमलिम शासन के सहारे एक साम्राज्य में परिणत हो जाता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन सूफियों का प्रचार बहुत कुछ उसी ढंग पर चल रहा था जिस ढंग पर पादरियों का चलता रहा है। प्रसिद्ध ही है कि मुहम्मद गोरी को भारत में लानेवाले व्यक्तियों में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का अभिशाप भी था जिन्होंने उससे पहले राजस्थान में भ्रमण किया था और उसकी राजधानी अजमेर में अपना अहा भी जमा लिया था। कहना न होगा कि सूफियों के शाप का अर्थ उस समय इसलाम का अाक्रमण ही होता था। आज हमें यद्यपि इस प्रकार के सूफी नहीं दिखाई देते जो इस प्रकार के बड़े काम कर सकें तथापि हम प्रतिदिन देखते हैं कि अनेक सूफी तबलीग में योग दे रहे हैं और इसलाम के प्रचार में (१) ऐस्पेक्टम आव इसलाम, पृ. २८४ । (२) प्रीमुगल पर्शियन इन हिन्दुस्तान, पृ० २८६-७ ।