पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२३२

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परिशिष्ट १ और सबारी नामक सिलसिले कायम हुए ! कहने की बात नहीं कि इन संप्रदाय का नामकरण उनके प्रवर्तको के नाम के अधार पर किया गया है। तैफूरी का प्रवर्तक वायजीद या यजीद बिस्तामी है जो इसी नाम से विख्यात है। उक्त सूफियों ने प्रमश रजा, विलायत, मुक, मलामत, फना व बका, मुजाजा, इसार, शहा गैबन व हजूर और जमा व तफरीक पर अधिक जोर दिया है। गैर इसलामी सिलसिलों में हुज्वेरी ने एक ही का नाम दिया है जिसका प्रवर्तक दमिश्क का अबू हुल्मान नामक सूफी था। हुज्वेरी ने उसको हुलूली कहा है इलूल में अवतार का भान होता है, अतः मुसलिम उसे इसलाम से अलग मानते हैं। दूसरा सिलसिला जिसे मुसलिम इसलाम के अन्तर्गत नहीं मानते वह शायद इल्लाजी है जिसका प्रवर्तन हल्लाज के शिष्य फारिस ने किया था। हुज्वेरी के अनंतर तमञ्चुफ में आर्य संस्कारों का प्रवेश होता रहा और कुछ ही दिनों में उसका रूप इतना स्पष्ट और परिवर्तित हो गया कि लोग उसे इसलामी कहने में भी संकोच करने लगे। सूफियों में अनेक वंश ऐसे प्रतिष्ठित हो गए जो जन्मांतर' को मानते और सर्वदा और इसलामी कहे जाते हैं। इस संबंध में यह स्मरण रखने की बात है कि इसलामी सिलसिलों में सबसे प्राचीन सिलसिला मुसाहिबी का है जो प्रथम सूफी लेखक और उक्त सिलसिले का प्रवर्तक है। मुसाहिबी बसरा का निवासी था । शेष प्रवर्तकों में खर्राज, नूरी और जुनैद बगदाद के सूफो नर-रत्न थे। हसन और राबिया भी बसरा के निवासी थे। मतलब यह कि सफी मत के इतिहास में बरारा का प्रमुख स्थान है। बसरा सदा से प्रार्य- संस्कृति का प्रांत रहा है। उस पर विचार करने से तमन्युफ की प्रगति पर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है और आर्य-प्रभाव भी स्पट हो जाता है। गैर इसलामी सिलासलों के संबंध में स्मरण रहे कि हुलूल अवतार का रूप कहा जाता है और हल्लाज भारत याया भी था। अतः इन दोनों का आर्य प्रभाव से प्रभावित होना असंभव नहीं कहा जा सकता। (१) ऐन आइडियलिस्ट ब्यू प्राव लाइफ, पृ० २८६ ।