पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२३३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत 1 सृफियों के प्रति इसलाम की चाहे जैसी धारणा रहे, उनके मठों की चाहे जितनी अवहेलना हो, वहाबी उनके प्रतिकूल चाहे जितने आंदोलन करें और उनके मन को हिंदु-मत का अंग ही क्यों न साबित करें, पर इतना तो उन्हें भी मानना ही होगा कि इसलाम का कोना-कोना तसव्वुफ के चिराग से ही रोशन है । क्या समाज, क्या दर्शन, क्या आचार, क्या विचार, क्या काव्य, क्या साहित्य, इसलाम के सभी अंगों पर तो सूफियों की छाप है और उन्हीं के रंग में तो इसलाम सबको रैंगा हुआ दिखाई दे रहा है ? वास्तव में तसव्वुफ इसलाम का रामरस है उसके बिना इसलाम नीरस और फीका है। शायद ही कोई मुसलमान ऐसा मिले जिसकी कुशल के लिये कभी किसी पीर की मिन्नत न मानी गई हो और जिसके हित के लिये कभी किसी फकीर से तावीज आ दुआ हासिल न की गई हो । यह तो हुई सामान्य मुसलिम जनता की बात। पढ़े. लिखे मर्मज्ञों के विषय में हम देख ही चुके हैं कि सभी कुछ न कुछ सूफोमत से प्रभा- वित अवश्य हुए हैं । इसनामी' दर्शन की निजी सत्ता में बहुतों को संदेह है। स्वयं मुसलमान फिन्न सफा' को यूनान का प्रसाद समझते हैं और गहरी बातचीत में अरस्तू. और अफलातून का ही नाम लेते हैं, कुछ किसी अरव का नहीं । यद्यपि कुछ मुसलिम द्रष्टाओं ने यूनानी द्रष्टाओं का कहीं कहीं कुछ खंडन भी कर दिया है तथापि दर्शन के क्षेत्र में इसलाम की स्वतंत्र सत्ता नहीं ठहर सकती। रही तसव्वुफ की बात ! सो उसके विषय में दुनिया जानती है कि इसलामी तसव्वुफ मौलिक न होने पर भी अपनी स्वतंत्र सत्ता रखता है; और प्रेम के क्षेत्र में तो उसका सामना करने वाला कोई अन्य दर्शन है ही नहीं। मोतजिलियों के तर्क से जब इसलाम उत्सन्न हो रहा था तब उसकी प्रतिष्टा तसव्वुफ ने ही तो की ? सूफियों ने आर्य-दर्शन के आधार पर उनका समाधान किया और इसलाम को चिंतनशील बनने का अवसर मिला। इसलाम में जितने. मनीषियों ने जन्म लिया उनमें अधिकांश सूफी थे जो सर्वथा सूफी न थे वे भी तसव्वुफ से बहुत कुछ प्रभावित थे और अंशतः सूफी-सिद्धांतों के पोषक भी (१) ऐन आइडियलिस्ट व्यू अव लाइफ, पृ० २८६ ।