पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२३५

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत गुह्य बातों के शांत चिंतन में उन्हें अानंद नहीं मिलता था। उनमें पुरुषार्थ था, किंतु वे अर्थ और काम से आगे नहीं बढ़ पाते थे । इसलाम ने धर्म की भावना उनमें कूट कूटकर भर दी ; पर उनमें परमार्थ और प्रेम का व्यापक प्रचार न हो सका । यह काम सूफियों ने किया और उनके प्रसाद से कठोर अरब भी तसव्वुफ के भक्त बन गए । अरबी कविता में सूफियों का मन लगा तो मुसलिम साहित्य भी तसव्वुफ से भर गया । हाँ. अरबी में अधिकतर दार्शनिक ग्रंथ ही लिखे गए। मजहबी जबान होने के कारण उसमें इसलाम का तो पूग प्रसार हुश्रा पर तसव्वुफ की उतनी प्रतिष्ठा न हुई और उसका साहित्य भी उससे उतना न भरा जितना फारसी का । फारसी भाषा की रमणी-सुलभ कोमलता प्रेम-प्रलाप के सर्वथा उपयुक्त थी। फलतः सूफियों ने इसमें खूब अपना जौहर दिखाया और प्रेम के करुण भावों से इसे प्राप्लावित भी कर दिया। फिरदौसी के अतिरिक्त एक भी उत्तम कवि ऐसा न हुआ जो फारसी में कविता करे और तसव्वुफ से बचा रहे। ईरान की पराधीनता ने जिस कविता को जन्म दिया उसमें 'इश्क' और 'शराब के अतिरिक्त और जो कुछ है वह भी सूफियों के रंग में रंगा हुआ है। सूफियों के प्रेम-प्रवाह में वह लपट है जो अचूत को भम्म कर ऋत को प्रकाशित कर देती है और हम उसके प्रकाश में प्रकट देख पाते हैं कि फारसी का मुसलिम साहित्य भी तसव्वुफ के नूर से ही रोशन है। सचमुच तसव्वुफ के प्रभाव में अा जाने से इसलाम कोमल, कान और उद्दार हो गया। जहाँ कहीं सूफी पहुँचे, इसलाम की कट्टरता कम हुई। उसमें हृदय का प्रसार हुआ और जनता प्रेम-पीर की खेती में लगी । सूफियों के प्रयत्न से लोग समझ गए कि बुतपरस्ती भी एक तरह से खुदापरस्ती ही है और मुशारक तो वस्तुतः वह है जो नफसपरस्त है और अपने को कत्ता समझता तथा खुदी में मस्त रहता है। वुत्-परस्त तो खुदी का तोया करता और अपने अहंभात्र को त्यागकर उसी बुत में अल्लाह का साक्षात्कार कर उसी के द्वारा अपने सत्य-स्वरूप में तल्लीन हो जाता है, अथवा कण-कण में अपना दिलदार देखता और रह-रहकर अपने