पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४५

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२२८ तसच्चुफ अथवा सूफीमत बड़कर मानव-भाव-भूमि को देखने का साहस किया। अब तो जो उनके संसर्ग में आया, उदार बना ; शेप अपनी क्रूरता में मम रहा । हों, लो इसलामी शासन ने यूरोप को जगा दिया। किन्तु भारत में ज्यों-ज्यो उसका अातंक फैला त्यों-त्यों यूरोप में उसका पतन होना गया और धीरे धीरे क्रमशः यूरोप से मुसलिम शासन उठ गया और नुको का शासन आज नाममात्र को उसके एक कोने में रह गया है। परंतु उधर इसलाम की प्रचंडता के कारण यूरोप भारत से अलग मा पड़ गया था तो इधर वह फिर भारत से स्वतंत्र संबंध स्थापित करने की चिन्ता में लगा था। घूमते फिरते अंत में एक अरब की कृपा से उसे भारत आने का जल-मार्ग मिल ही गया, जो स्थल-मार्ग में कहीं अधिक लाभकर सिद्ध हुआ। फिर क्या था, यूरोप व्यापार का अधिपति बना और एशिया के अनेक खंड उसके शासन में आ गए। यूरोप इसलामी शासन को भूल सा गया था । मसाही संता के प्रेम प्रवाह स्वतंत्र रूप धारण कर लिया था। किसी को तराम की खबर न थी। यूरोप में मसीही साहित्य का प्रचार अच्छी तरह हो गया था। मुसत्तिम बात विद्वानों के मास्तष्क या किताबों में दबी पड़ी थीं। जन-सामान्य से उनका कोई संबंध न थः । संयोगवश प्रतीची को ग्राची के अध्ययन की पर आवश्यकता पड़ी। शासन के सभीते के लिये प्रजा का मनोनियों से परिचित होना अनिवार्य तो था ही, व्यापार के उत्कर्ष के लिये भी ग्राहकों के, संस्कारों का बोध होना कम आवद्यक नहीं था। फलतः यूरोप भारत तथा अन्य देशों के अध्ययन में लगा। बातिपय पंडिता की प्राची के साहित्य-मथन में अपूर्व अानंद मिला। वे फिर यूरोप को उससे परिचित कराने लगे। यूरोप मे फिर प्रेम और अध्यात्म का उदय हुअा। उनके प्राविभाव से यूरोप में रोमांस के दिन फिरे । मूफियों का रंग फिर जमने लगा। मुरालिम शासन में जो अाख्यान, कथानक अथवा उपाख्यान यूरोप में प्रचलित हो गए थे उनके आधार पर उपन्यासों की नोंच पड़ी । प्रेम के प्रसंग फिर नए ढंग से छिड़े (५) अरव और हिंदुस्तान के ताकात, पृ० १२ । (२) दी लेगसी आव इसलाम, ५० १६६ ।