पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४६

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परिशिष्ट १ २२९ और गजल, कसीदे तथा मसननियों के प्रचलित भाव यूरोप के काव्य में स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे। प्रांस, जर्मनी और इंगलैंड प्रमृति देशों में छंदी दल उभर पड़ा, और बायरन, गेटे, शेली सरीखे हृदय-पारखी कवियों ने प्राची के प्रेम को पहचाना । परंतु प्राची के प्रतिदिन के पराभव और यूरोप की गोरी संकीर्ग:ता के कारमा उसको उचित महत्त न मिला। भोग-विलास की लिसा और विषय- वासना के लाभ न उमको और भी धर दबाया । वह बहुत कुछ भ्रष्ट रूप में जनता में सामने आने लगा । अानिक काव्य धारा में प्रेम-प्रवाह नो मिला, पर उसमे नह रन कहाँ जी तसइफ में उमड़ रहा था ! सोध आज छल-छंद का पोषक है। उसे प्रेम से कहीं अधिक छंद हो जाता है। उसके सामने उभर स्याम का स्वच्छ अादर्श हैं कुछ नी, फारिज अथवा हाफिज जैसे संयत फियों का उदात्त भार नहीं । वासना के विलासी. कामाल हो, न के जो दि; गीत गाते है उनमें संवेदनाराज मंकार नहीं मिलनी । कामना कीटो में छंद का प्रचार करन: तमन्युफ का पानी नहीं, हृदय को एक बातक बाल है जिसे आज कल के विरही लत्ता के अाधार पर विलक्षणता के साथ अपनाते और उसे हिदीवाली के नामान रिव्य कर दिखाते भी स्व है। सूफी इसे इश्क हकीकी या सभी वेदना नहीं कह सकते । शायद यक गजानी कहने में भी उन्हें संकोच । कारण, इस दुराव है। नहीं सुनाव भी खूब रहता है । जो हो, सूफियो का प्रसाद यूरोप की अपेक्षा भारत पर कहीं अधिक पड़ा । अध्यात्म को दृष्टि से उसका में भारत के लिये कोई नई बान भले ही न रही हो पर इसमें प्रेम का प्रतिपादन और मादनभाव का प्रदशन कर नवीन अवश्य या. निदान, भारतीय भक्तिभावना में मृधियों ने जो योग दिया उसरो एक संत-धारा फूट निकली । वेदांत के कतिपय आचाओं पर भी मूफियों का प्रभाव कुछ पड़ा आर फलतः भारत में भी अनेक पंथ चल पड़े। क्या प्राचार, क्या विचार; क्या भाश, क्या भाव; क्या धर्म, क्या कर्म; हमारे सभी अंगों पर सूफियों की गहरी छाप है। सूफियों में भारत में राम-रहीम की एकता का जो चलता प्रयत्न किया उसके कारण संस्कारों की कठोर भिन्नता रहते हुए भी हिंदू और मुसलमान बहुत कुछ एक से दिखाई दे रहे थे; पर अब पश्चिम की जातीयता और नीति की बयार