पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४९

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तसव्वुफ अथवा सुफीमत रूप-रेखा इतनी मनोरम थी, उसके रंग-ढंग इतने मोहक और भव्य थे कि कटोर यहृदी भी उसकी ओर लपक पड़े। यहृदी मत से गुज्यता का सर्वथा लोप तो हो नहीं गया था, वह तो प्रच्छन्न रूप से उसमें बली ही पाती थी। निदान जो सूफियों में मादन-भाव और गुन्य विद्या को फिरसे प्रतिष्टित कर दिया और मसीही भी उनके अनुष्ठान में जो लग गए, तो अकेले यहूदी ही कब तक उसका विरोध करते। उनमें भी 'कथाला' का रात्कार हुआ और मादन भाव तथा गुन्द्र कृत्यों की प्रतिष्टा हुई । स्पेन में मसीहियों की तरह यहाँदना ने भी सुनियों से बहुत कुछ सीखा था । उनका पवित्र नगर यरुशलेम तो मुसलिम शासन में था ही; फिर उन में कबाला कः प्रसार क्यों न होला ? मसीही भी तो मिस्कि' बन गए थे, फिर यहूदी ही वयं पीछे रहते ? निष्कप यह कि शामी नतों में राफियों के प्रयत्न में फिर मादन-भाव की प्रतिष्ठा हुई और गुा विद्या का प्रचार भी भरपूर हो गया। उनके अधिदेव की जालीय करता जाती रही और यह भी भला का प्यारा भगवान् मा बन गया। उपयुक्त विवेचन से इतना तो स्पष्ट ही हो गया होगा कि नगनुफ का समः मतों पर कुछ न कुछ अाभार अवश्य है । ममा में प्राण, उनसे संपर्क करें और उनका किसी हदय पर कुछ भी प्रभाव न पड़े, अ असंभव है। सभी वासान में प्रेम के साथ है। उनका व्यापार त्यागी बढ़ता और सुबह से ना हो जाता है। उनके पास वेदना का अनमोल हीरा है । लोगों ने इस हीरे का सौदा किया। प्रणयी थे उनको उसका फल मिला, जो विचमी थे उसको चाट चाट कर मर मिटे । सच तो यह है कि सूफियों के इश्क ने बहुतों को बरबाद किया और अधिकतर लोग हकीकी की ओट में मजाजी के ही शिकार हुए। फिर भी यह कहना ही पड़ता है कि सूफियों ने क्या मुहम्मदी, क्या मसीही, जया बहदी, क्या हिंदू, संसार के सभी मतों में प्रेम का प्रसार किया उनमें में जिन लोगों को उनकी अनुभूति और वेदना का ठीक-ठीक अनुभव हुआ चे से इश्कामजाजी के 'जीने से अपने प्रियतम के पास पहुँच गए, पर जिन लोगों को आशिक बनने का सदन सवार हुअा उनके सामने हुस्न का ऐसा जाल बिछा कि वे उसी में फंसकर रह गए । वे मजाजी के जीने से लुढ़क पड़े और रति के पुल से खसक कर भवसागर में डूब गए । उनका उद्धार न हुअा।