पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिशिष्ट २ तसव्वुफ पर भारत का प्रभाव भारन की नष्ट माश को देखकर महमा यह विश्वास नहीं होता कि कभी उसके भी सपूत संसार में आनंद की वर्षा करते थे और लोक हित की कामना मे पश्रिम में भी अध्यात्म का प्रचार करने में मग्न थे। यही कारगा है कि अनेक प्रमाणु के उपलब्ध होने पर भी नरान्युफ के उन्नाट समीक्षक इसके विवेचन में भार नीय प्रभाव पर विशेष ध्यान नहीं देने और प्रसंग याने पर प्रायः ऋह बैठते हैं कि इतिहास के प्राधार पर हग इस प्रकार की प्रतिज्ञा नहीं रख सकते कि तसव्नुफ 'भारत का प्रसान्द' अथवा 'वेदांत दा. मथुर गान' है। इधर हम देखते हैं कि भारत- बासी यापि इतिहास में कच्चे थे और इतिवृत्त के प्रथातथ्य विवरण मात्र हो 'इति- दास नहीं समझाते थे तथापि उनके व्यापक और विशाल चामल में भी अनेक म्बल से आ गए हैं जिनके द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है कि तसव्वुफ पर भारत का पूरा पूरा प्रभाव है। तसव्वुफ के बाह्य प्रभावों पर विचार करते समय पश्चिम के प्रकांड पंडित अनेक मतों का उल्लेख करते हैं जिनमें नास्टिक, मानी और नव अफलातूनी प्रधान है। ग्रहदी और मसीही मत तो सूफियों के पूर्वजों के नत हैं। सूफीमत के समीक्षा में उनकी उपेक्षा भला किस प्रकार संभन है। रही भारत के प्रभाव की बात, तो इसके विषय में उनका पक्ष स्पष्ट है। बाद के तसन्युफ पर वे भारत के वेदान्त एवं बौद्ध मत का प्रभाव मानते हैं आदि के तस. (१) इतिहास की परिभाषा--"धर्मार्थकामनोदाणामुपदेशसमन्वितं । पूर्ववृत्त ६.यायुक्तमितिहासं प्रचक्षते".-.-रपष्ट हो जाता है कि भारतवासी केवल इतिवृत्त को इतिहास नही समझते थे।