पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिशिष्ट २ लाल सागर के तटवर्ती प्रान्तों और दक्षिा अरब से लिया जाता है। स्वयं अरव हिन्द शब्द की किम दृष्टि में देखते थे इसे भी देख लें। अरबों को यह शब्द इतना प्रिय था कि मक्के के पास की पहाड़ी पर जो दुर्ग है उमे श्राज भी 'जैवल हिन्दी" दुर्ग कहते हैं और अर साहिन्य में तो 'हिन्दा' नाम की रमगी तथा 'हिन्द नाम का राजा असर हो गया है। हिन्द शब्द का रहम्य चाहे जो दो "अरबों के हिन्दुस्तान के तिजारती तात्नुकात मसीद से कम अज कम दो हजार पहले से हैं। मुलेमान के जो जहाज 'आफिर' तक आते थे वे भारत से अनेक द्रव्य ले जाने थे । यूरोप के साथ भारत का जो व्यापार पलमार्ग से होता था उसके मध्यर। यहूदी थे। इवानी भाषा में अनेक शन्द ऐसे हैं जिनका संबंध द्रविड भापा से है। 'तुकी' और 'अन्तिम' इसी प्रकार के शब्द हैं जो द्रविड भाषा में 'मोर' और 'सुदार लकड़ी' के वाचक हैं। श्री कुब का कहना है कि भारत के व्गापार का सर्वप्रथम लिखित प्रमाग जो मिलता है वह पश्चिमीय एशिया और मेसोपोटामिया के साथ के व्यापार का है। शामी जातियों के साथ भारत का केवल व्यापारिक गंबंध न था । वस्तुओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान भी होता था। वमु महोदय की दृष्टि में हित्ती और मियानी वानव में क्षत्रिय और मिन्नानिया के द्योतक हैं। मनु (१०-४३,४४) में कहा गया है कि भारत के चत्रिय बाहर गए और प्राणों के अभाव के कारम्प अपने संस्कारों ने न्युत ही शूद्र बन गए। अमीरिया के मूल में 'अनुर' शब्द तो है ही छांदोग्य का 'उलूलवः' और शतपथ का 'टेनवः हेलवः' भी विचारणीय है। कुछ लोगों में इनमें शामी शब्द 'इलो' का संकेत किया है। 'इली' का (१) दी होलो सिटीज एन एरेविया, प्रथम भाग, पृ० ११७ । (२) नागपात, पृ० ७७ । (२) पहिस्टरी पाव इडियन शिपिग, पृ. । (४) दी गोशल हिरटरी श्राव कामरूप, पृ० १३० । (५) हिस्टरी श्राव इडियन फिलाम, द्वितीय भाग, पृ० १०४.५ ।